अजीब दांस्तान डा.वी.पी.कौशिक के संस्मरण
इस ब्लोग मे मेरे चिकित्सा कार्य मे देखे गये मरीजो के साथ घटित घट्ना और समाज की अजीब सोच का चित्रण करने की कोशीश की गई है
Saturday 26 September 2020
धरती के भगवान का लालची रूप ??
Monday 27 March 2017
लच्छी लक्ष्मी बन गई
बहुत ज्यादा समय नही हुआ है । कुछ साल पहले की ही बात है । आज से करीब आठ साल पहले वह लोगों के लिए लच्छी हुआ करती थी। बहूत ही गरीब थी लेकिन रूप का तो भंडार दे दिया था प्रकृति ने उस बेचारी को, जो उसके लिए खतरा भी था और दुश्मन भी, वह मेहनत और मजदूरी करने में बहुत ही होशियार थी , कहने का मतलब वह काम करने से जी नही चुराती थी ।
उसको गाँव में कोई ज्यादा नही जानते थे । वह अपनी दुनिया में मस्त थी और मजदूरी करके पेट भरती थी ।
उसका पति भी मजदूरी करता था और दोनों अपनी गृहस्थी की गाड़ी को चला रहे थे ।
जब घर आराम से चल रहा हो और किसी की नजर लग जाये तो कहते है भले भलो के घर उझड़ जाते है।
लच्छी का पति भी किसी की नजर का शिकार हो गया और नशे का आदी हो गया । जब कोई व्यक्ति नशा करने लगता है तो काम धंधे में मन लगाना मुश्किल सा हो जाता है । अब कुछ महत्वांकाक्षा भी बढ़ जाता है। अब पति परमेश्वर को सिर्फ गृहलक्ष्मी के साथ साथ बहुत सारी धनलक्ष्मी की जरुरत महशुस होने लगी ।
जब धन दौलत कमाने की प्रबल इच्छा होती है और वांछित योग्यता ना हो तो मनुष्य गलत काम की ओर कदम बढाता है । कोई गलत काम करता है तो कोई गलत उपाय करता है ।
गलत उपाय से तात्पर्य है कि टोना टोटका या तंत्र मंत्र का सहारा लेने लगता है । लच्छी का पति भी कुछ इसी प्रकार के काम में पड़ कर तांत्रिको के चक्कर लगाने लगा ।
कमाई करना भी हर किसी के बस की बात नही होती । जो समय का मोल समझता है वह कभी भी जीवन में परेशान नही होता है। जो समय पर अपने जीवन को समझ लेता है वह जीवन को जी लेता है । और जो जीवन को नही समझ पाता वह केवल परेशां होने के सिवाय कर भी क्या सकता है ।जब समय निकल जाता है तो सिर्फ पछताने के सिवाय कुछ मिलता नही है ।
एक दिन तंत्र मंत्र के चक्कर में लच्छी का पति तालाब में डूब कर मर गया । लक्ष्मी पाने के लिए लक्ष्मी पूजन के लिए कमल के फूल लेने तालाब में उतर गया और कमल के जाल में ऐसे पैर फ़सा तो निकल ही नही पाया और पैर की जगह प्राण निकल गए । जिस दिन यह घटना घटी उसी दिन मैंने इस परिवार के बारे में पहली बार जाना था । इससे पहले मेरा कभी भी कोई परिचय नही था ।
लोग बाते कर रहे थे , "बेचारी लच्छी कितनी मेहनत करती थी पूरा घर सम्भालती थी। दोनों मिल कर आराम से घर चला रहे थे । पता नही क्यो लोगो के बहकावे में आकर कमल के फूल के चक्कर में जीवन से हाथ धो बैठा। अब बेचारी लच्छी कैसे चार चार बच्चो का पेट पालेगी" ।
मेरी कोई खास जिज्ञासा नही थी । रोज ऐसी घटनाएं होती रहती है । मैंने कोई ज्यादा तव्वजो नही दी।
बात आई गई हो गई । कुछ दिन बीत गए । अब अकेली लच्छी अपने चारों बच्चो का पेट पालने लगी। कुछ दिन कुछ राहत के पैसे मिले थे उनसे काम चलता रहा । लेकिन कब तक काम चलता पापी पेट की आग कभी बुझती ही नही है । अपनी भूख के लिए नही तो माँ को बच्चो की भूख के लिए बाहर जाना शुरू कर दिया । लेकिन उसको क्या मालुम बाहर भी भूखे भेड़िये शिकार की तलाश में घूम रहे है। उसका भी ऐसे लोगो से सम्पर्क हुआ और मुकाबला भी करना पड़ा ।
गाँव में स्थित राजकीय आयुर्वेद औषधालय में एक दिन वह आई क्योकि उसकी बच्ची को माता जी का प्रकोप (smallpox)हो गया और वह बुखार के साथ ही साथ बड़े बड़े फफोलो से भर गई। वह उसे लेकर आई । पैसा नही था । जब पैसा नही होता है तो परिचय करना पड़ता है उसने भी अपना परिचय मुझे दिया लेकिन मुझे उससे कोई लेना देना नही था इस तरह के मरीज इस औषधालय में रोज आते रहते है किसी के पैसे दुकान वाला उधार कर लेता है और किसी किसी को मुझे सहयोग करना पड़ता है । लेकिन ऐसा हमेशा सम्भव नही होगा ऐसा कहकर टालना पड़ता है । कुछ लोग ईमानदार होते है वे पैसे चुका देते है लेकिन ज्यादातर लोगो का राम मरा हुआ ही होता है यह औरत गरीब थी लेकिन बेईमान नही लगी ।
इस औरत को पहले जब उसका पति था तब जो मजदूरी आराम से मिल जाती थी वह अब मिलना बहुत मुश्किल हो गई थी। कुछ लोग तो इसलिए काम नही देते थे क़ि पता नही सही काम कर पाएगी या नही और कुछ ये सोचते थे क़ि पता नही लोग क्या बाते बनाएंगे।
लच्छी के सामने भयंकर आर्थिक संकट था । अब वह सिर्फ उधार की जिंदगी जीने को मजबूर थी। जब चारो तरफ से अन्धेरा ही अँधेरा दिखाई दे तो मानव अपने आपको हारा हुआ ही समझता है ।
उसने मुझे बहुत ही आर्त स्वर में कहा - "डॉ साहब जी ! मेरे पास देने के लिए कुछ भी नही है । मेरी बच्ची की बहुत ही बुरी हालत है आप कुछ इलाज कर दो तो बहुत मेहरबानी होगी। उस दिन मुझे लगा क़ि ये जो सरकारी निशुल्क दवा योजना है वास्तव में बहुत ही सही है और यह ऐसे लोगो के लिए ही आती है । लेकिन सच में इन लोगो तक नही पहुच पाती है । मैंने उस बच्ची को देखा और जो औषधालय में दवा उपलब्ध थी वो उसे दी और कुछ दवा मेडिकल से लाकर भी उसे दी । उसने बाहर की दवा के पैसे पूछे । मैंने कह दिया "जब कभी तेरे पास हो तो दे देना वरना कोई बात नही । मैंने दे दिए है" ।
उस दिन वह चली गई । मुझे भी कोई याद नही रहा । लेकिन वह आई और बोली - "साहेब आपके कितने पैसे हुए थे । आज है मेरे पास लेलो" मैंने कहा - "मुझे याद नही है , कितने थे । आप इन पैसो से अपने बच्चों के लिये कुछ खाने के लिए ले जाना"। वह नही मान रही थी तब मैंने कहा कि "आज तो कोई बात नही आगे कभी बाहर की दवा हो तो उसके पैसे दे देना"।
ज्यादातर रोग गरीबो को ही होते है । कमजोर शरीर को बुरे लोग और बुरे रोग परेशान करते है । यह यह भूख भी अमीरों के बजाय गरीबो को ही ज्यादा लगती है। राजयक्ष्मा जैसे राजाओं के होने वाले रोग भी आजकल गरीबो को ही होने लगे है । गरीब लच्छी के बच्चे भी अब इन भयंकर रोगों से कहा तक बचने वाले थे ।सही पौषण न मिलने से और कमजोरी के कारण बीमारियो से घिरे ही रहने लगे ।
एक दिन उसका छोटा बेटा बीमार हो गया उसे दिखाने के लिए मेरे घर पर आये । हालत बहुत ही खराब थी मैंने उसे रेफर कर दिया बोला :- "इसको निमोनिया हो गया है । अभी बाहर लेजाना पड़ेगा ' मेरा इतना बोलना था और उसका तो दम ही निकल गया । वह गिड़गिड़ाने लगी :- साहिब पैसे नही है बाहर ले जाकर दिखाने के , कहाँ ले जाऊंगी । और वह रोने लगी । लेकिन मैं क्या कर सकता था इतनी इमरजेंसी को डील करने की सुविधा यदि आयुर्वेद में होती तो आयुर्वेद औषधालयों में मरीजो की भीड़ लगी होती । इस विभाग में जितना अभाव औषधियों का है या यूँ कहे की यह अभावो से ग्रस्त विभाग है तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । यहां आकर आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी अपने आपको पंगु महशुस करता है । इस तरफ सरकार को भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए । खैर कुछ भी रहा हो मैंने उसे रेफर कर ही दिया । और वह रोते कलपते चली गई ।
तब मुझे लगा कि गरीब का कौन सहारा है । गाँवो में खुले औषधालय तो कोई सहारा बन नही पा रहे । मैं भी दुखी मन से सो गया । सुबह हॉस्पिटल जा रहा था तो लछी का घर भी रस्ते में ही था लोग इकठ्ठा हो रहे थे मेरी जिज्ञासा बढ़ गई पूछा तो पता चला लच्छी का बेटा आज सुबह ख़त्म हो गया ।
कुछ दिन बाद मैं भी मिलने गया वह फूट फूट कर रोने लगी "मेरा कौन सहारा है .......मैं अब किसके लिए जीऊँगी .......। गरीब को जीने का हक़ नही है साहब !......गरीब का तो कोई सहारा नही होता साहेब।
वह हताश निराश रोती रही मैं भी क्या कर सकता था सिर्फ ढाढस दिलाने के सिवाय क्या कर सकता था ।
मैंने सिर्फ इतना ही कहा:- "तू माँ है । यह कभी मत भूलना"
वह रोते हुए बच्चों को देख कर बिलखने लगी । विवश और लाचार इंसान ज्यादातर गलत कदम उठा लेते है । लेकिन लच्छी का मातृत्व शायद जग गया था ।
फिर एक बड़ा दुःख लेकर लच्छी अब अपना जीवन बिताने के लिए मजबूर थी ।
उसका रूप यौवन सब ख़त्म हो चला था अब वह तीन बच्चों का पालन पौषण का जिम्मा अपने सिर पर उठाये अपनी जीवन की गाड़ी को चला रही है ।
लेकिन उसके चेहरे की मुस्कुराहट अब गंभीरता से भरी थी और अब चेहरे पर एक आत्मविश्वास की झलक दिखाई दे रही थी । उसे अब लगने लगा था कि जीवन किसी के सहारे से नही जीया जा सकता है । वह कमर कस कर अब लच्छी से लक्ष्मी बनने को तैयार हो गई थी । क्योंकि गरीबी से लड़ना सबसे बड़ा युद्ध होता है । लच्छी अब युद्ध के लिए तैयार थी ।
जब जीवन भार लगने लगे तब कुछ लोग जीवन लीला समाप्त कर लेते है और लच्छी जैसी कमजोर और असहाय अबला नारी अपने आपको सबल बनाने के लिए तैयार ही नही हुई वह कुछ वर्ष बाद अपने आपको सबल बनाने में सफल भी हुई ।
अजीब दांस्तान यह है कि कुछ लोग अपने जीवन को बुरी हालात में देख कर हार मान लेते है और सुसाइड कर लेते है ऐसे में इस प्रकार की अबला नारी अपने ईमानदारी और कर्मठता से ऊपर उठ कर समाज को सीख दे रही है फिर भी लोग इन्हें अबला कहते है ।
Wednesday 13 April 2016
काळो किशनो.....
Friday 30 October 2015
अंध विस्वास् या लापरवाही
दीपावली का दिन था शाम के करीब 6 बजे होंगे मेरे मोबाइल पर एक काल आया "प्लीज एक बार हमारे घर पर आना" उस वक्त मै दीपावली पूजन की तैयारी कर रहा था सारा सामान एवम सभी सामग्री रखी हुइ थी और सभी घर वाले तैयार हो गये थे पूजा का मुहुरत गोधुली वेला का ही था मैने थोडा शिकायती लहजे मे कहा “यार ! अभी तक आप लोग उसे यही लेके बैठे हो बाहर दिखाने नही गये “मेरी आवाज सुन कर वह रोते हुये बोला “एक बार आप घर पर आओ तो सही”
Sunday 14 June 2015
पेट दर्द ...का बवन्डर
मैने उसे देखा लडकी को तेज बुखार था मुझे मलेरिया का शक हुआ तो मैने कहा कि इसे मलेरिया हो सकता है इसका खून टेस्ट करना पडेगा, लडकी की माँ तत्काल तैयार हो गई,आज कल मलेरिया के लिये कार्ड आते है डिवाइस और बूफर तुरंत जांच रिपोर्ट आ जाती है गांवो के लिये यह सुविधा देखा जाये तो अच्छी ही है मैने चेक किया तो उसे मलेरिया पोजिटिव आ गया लडकी बिलबिला रही थी कुछ बुखार से तथा कुछ लोगो की बातो से, लोग बार बार एक ही बात कर रहे थे कि इसके कोई बिमारी-बिमारी नही है यह तो ओपरी-छाया के चक्कर मे है इसे किसी भोपा को दिखाओ , लेकिन लडकी की माँ मुझे कह रही थी कि आप इसका इलाज किजिये, अचानक लडकी का भाई बिफर पडा - आप इसे बस कोई छोटी मोटी दवा दे दो बस फिर हम इसे किसी भोपा के पास ले जायेंगे,कल हम इसे बडे होस्पिटल मे दिखा कर लाये है वहाँ की दवा से तो इसके फर्क नही पडा, बडे होस्पिटल की द्वा असर नही कर रही है इसका मतलब इसके कोई और ही परेसानी है,
लेकिन अंत मे मेरे समझाने तथा लडकी की माँ के कहने पर उसे मैने दवा दे दीऔर लडकी को कुछ आराम आया और वे उसे ले गये मैं ने दुसरे दिन वापिस आने का कहा और वे लोग हाँ कह कर चले गये
बात अजीब इस लिये है कि मलेरिया जैसी जान लेवा बिमारी को भी किसी भूत प्रेत का साया मान कर इलाज नही लेना खतरनाक हो सकता है मलेरिया जान भी ले सकती है तथा हिपेटाइटिस जैसी घातक बिमारी को भी जन्म दे सकती है तथा कोई भी प्रकार के पेटदर्द को गलत समझ लेना कितना शर्मनाक है, लेकिन अज्ञानता और अंधविश्वास का क्या इलाज हो कुछ समझ मे नही आता, अब इस लडकी मे भूत -प्रेत का कोई इतिहास नही था इस लिये कुछ अन्य अफवाह भी उडाई जाने लगी, भूत नही तो फिर कुछ और.. लेकिन बिमारी को नही मानना,पता नही इस माडवाड क्षेत्र मे चिकित्सको से ज्यादा भोपा-बावसी,तांत्रिक क्यो है और उतने ही उनके दलाल.......,.
दुसरे दिन वे लोग नही आये,पुरा दिन निकल गया, फिर रात करीब ग्यारह बजे लडकी को फिर मेरे पास लाये लडकी चिल्ला रही थी उसके पेट मे बहुत ही तेज दर्द हो रहा था,पेट पर हाथ लगाते ही चिल्ला रही थी मै ने पुछा- दवा दे रहे है क्या ? लडकी की बडी बहिन बोली - नही इसे हम बावसी के पास ले गये थे,चाचाजी मान ही नही रहे थे इस लिये दवा बंद करके डोरा बंदवाया है ,लाल रंग का एक मोटा सा धागा उसके दाँये हाथ पर बंधा हुआ था मैने उसे वापिस चेक किये कुछ दवा और दी तथा कल दी हुई सभी दवा शुरू करवाई और उस चाचा को बुलाया और उससे पुछा कि - ये सब क्या हो रहा है ? तब वह मुझे समझाने के हिसाब से चुपचाप एक तरफ ले गया और बोला - साब आप आराम से चेक करलो इसके मलेरिया तो नही है हमने बडे होस्पिटल मे चेक करवाया था वहा पर तो नही आया, आप के पास आ गया ये सब लफडा और ही है साब ! इस लडकी का किसी लडके से चक्कर चल रहा होगा और शायद यह प्रिगनेंट हो गयी है , आप इसकी सोनोग्राफी करवाओ आप को पता चल जायेगा, मुझे गुस्सा आ गया मैने कहाँ - तेरा दिमाग खराब हो गया है बडे होस्पिटल मे मलेरिया टेस्ट नही करवाया होगा आप लोगो ने और यदि इसके भूत नही तो अब ये.. तुझे शर्म नही आती तु क्या कह रहा है,तेरी बेटी जैसी है ये लडकी, लेकिन उस ढीठ के कुछ फर्क नही पडा साथ ही उस लडकी का बडा भाई भी कुछ इसी तरह से मुझे समझाने लगा - साब ! कल सुबह आप सोनोग्राफी करवालो , मैं थोडा नरम पड गया मैने उन्हे समझाया कि आप चिंता मत करो यह ठीक हो जायेगी और इसका पेटदर्द उस प्रकार का नही है आप टेंसन मत करो बस आप तो इलाज पुरा ले लो, यदि सुबह तक फर्क नही पडेगा तो कल इसकी सोनोग्राफी भी करवा लेंगे, यहाँ तो यह व्यवस्था है नही ,शहर भेज कर कल करवा लेंगे अभी इलाज करने दो,
लडकी की माँ बार - बार इलाज का कह रही थी वही जिद्द करके लायी थी मै ने फिर उनसे पुछा-- एक बात यह बताओ कि आप ऐसा क्यो सोच रहे हो तो वे बताने लगे कि - कौशिक साब ये क्वाँरी है और क्वाँरी लडकी के पेट दर्द ...वे एक दुसरे को देखने लगे फिर एक बोला-. हमारी समझ मे तो ....वह फिर चुप हो गया....साब !क्वाँरी है इसलिये गलत गलत विचार आ जाते है और फिर भोपा ने कह दिया कि इसको डाक्टर को दिखाओ, मेरा काम नही है, तो हम डर गये साब !, इसलिये हमने ऐसा सोच लिया , मैने फिर पुछा - तो फिर ये लोगो के सामने भोपा के ले जाने का क्या चक्कर है इसे उसके पास क्यो चक्कर कटा रहे हो, वह इस लिये कि कुछ इधर उधर घुमते रहे तो बदनामी ना हो . मेरा सिर चकरा गया कि कैसे - कैसे लोग है अपनी ही लडकी पर इलाज के नाम पर सिर्फ भाग -दौड,
दवा अपना काम कर रही थी और लडकी का रोना चिल्लाना कुछ कम हो गया, उन सब को मैंने समझाया कि फालतू की बातो मे अपना जीवन बर्बाद नही करना चाहिये इसका पुरा इलाज कराना यह ठीक हो जायेगी,
अजीब दास्तान है कि जवान लडकी को अंदरूनी कोई रोग हो जाये तो सिर्फ वही एक बात हो सकती है क्या ? बडी अजीब दास्तान है ये, यह सिर्फ एक क्वाँरी लडकी की कहानी नही है इस क्षेत्र मे ऐसी हजारो कहानियाँ मिल जायेगी, कई लडकिया मरने के बाद बदनाम होती है कोई जिंदा रह कर बदनामी का दंश झेलती है
Monday 5 January 2015
भोपा - बावसी
वह मेरे पास अक्सर आता रहता था,चिकित्सा की उसे कभी भी जरूरत नही पडती थी वह बडा मेहनत करने वाला,योग- कसरती तथा आत्मविश्वासी था, आता तो कभी स्वस्थ रहने के उपाय पूछ्ता कभी कोई धार्मिक चर्चा करता रहता, कभी कभार अपने माता -पिता एवम बच्चो को दवा दिलाने के काम से आता रहता था,लेकिन स्वम बडा ही निरोग था
मै उसे धर्म का यथार्थ अर्थ बताता लेकिन उसके सही बात कम तथा फालतू बाते ही ज्यादा दिमाग मे बैठी थी वह वे फालतू बाते मुझे बताने की कोशीश करता कई बार तो बहस भी कर लेता,मैने उसे बहुत समझाया कि धर्म का मतलब अच्छा काम करने से है लेकिन उसके कोई भी बात समझ मे नही आती थी,वह लड-झगड के चला जाता था,वह बडा ही संत प्रकृति का था कुछ दिन बाद क्षमा याचना करता हुआ वापिस आ जाता था,
संतो महात्माओ एवम भोपा-बावसी से उसे कुछ ज्यादा ही लगाव था,कई भोपाओ के पास उसका आना-जाना लगा रहता था,भोपा उन लोगो को कहते है जो किसी ऐसे स्थान पर पूजा करते है जहा पर किसी बलिदानी पुरूष या देवी देवता का मंदिर बना हुआ हो, मारवाड मे भोपाओ का बडा ही रुतबा है कई संत भोपा तो सरकार मे मंत्री तक बने हुये है, बावसी मतलब जिसकी भोपा पूजा करता है वो देवता या बलिदानी व्यक्ति बावसी कहलाता है, इन भोपाओ मे कथित रूप से इन देवि देवताओ की आत्मा प्रवेश कर जाती है और फिर ये लोगो का भविष्य बताते है,इन भोपाओ के चक्कर मे राम सिह भी था,
रामसिह उंनसे भी धर्म चर्चा करता था उसी धर्म चर्चा के बलबुते वह मुझसे बहस करता रहता था,वे लोग उसे समझाते कि बिमारिया पापो का फल है वह कहता था कि जितनी भी बिमारिया है सब पापो की सजा है अतः बिमारियो का इलाज नही करवाना चाहिये,पाप समाप्त होते ही बिमारिया अपने आप ठीक हो जाती है यदि उपचार लिया तो पाप शेष रह जाते है और रोग दुबारा हो जाते है और आप जानते ही हो पापो की सजा तो भुगतनी ही पडती है,मै उसे खूब समझाता कि " मर्ज,कर्ज,और दुश्मन को पालना नही चाहिये," लेकिन उसे समझ मे नही आता था,
एक दिन रामसिह छाती पकडे आया और बोलने लगा- "साब !आज कोई बडा पाप फूट रहा है छाती बहुत दर्द कर रही है" मैने उसे समझाया कि मुझे चेक-अप करने दे ,लेकिन वह नही माना उसकी पत्नी के समझाने पर वह चेक-अप के लिये तैयार हुआ, वरना वह तो भोपा के पास ले जाने की जिद्द कर रहा था,मैने चेक किया तो ब्लडप्रेशर 200mm of hg आया धडकन भी बढ रही थी, मैने उसे दवा लेने की सलाह दी और कहा कि ये हार्ट अटेक है इसका इलाज करवाना बहुत जरूरी है लेकिन वह तो एक ही बात पर टिका हुआ था कि "मुझे बावसी के थान पर ले चलो, भोपा जी के पास ही मेरा ईलाज है"
उसके घरवाले उसे भोपा के पास ले गये, एक घंटे बाद वह आराम से चल कर मेरे पास आया और स्वस्थ लग रहा था और कुछ व्यंग भरे लहजे मे बोला-"देखा साब!मै ठीक हो गया, ये सब पापो की सजा है मेरा दिल बिल्कुल सही है,आप बेवजह ही अटेक आ गया कहकर डरा रहे थे" उसके साथ वाले भी भोपाजी का गुणगान कर रहे थे- "भोपा जी के पास गये और उन्होंने एक मंत्र फूंका और दर्द तो छू मनतर हो गया" इतना कह कर सब जोर से हंस पडे,
यह जीवन बडा ही अनमोल है हम इस जीवन को बचाये रखने के लिये सदैव प्रयास रत रहते है लेकिन कई बार किसी अंधविश्वास या गलत सलाह से जीवन को खतरे मे डाल लेते है फिर जो परिणाम निकलता है वह खतरनाक होता है,
दुसरे दिन रामसिह का लडका आया, रो रहा था कह रहा था कि "पापा को आज फिरसे तेज दर्द हुआ था पुरे पसीने पसीने हो गये थे लेकिन आपके पास आने की बजाय वे भोपा जी के थान पर ही गये है आप उन्हे समझाओ' लेकिन ऐसे आंधविश्वासी को कौन समझाये , संस्कृत मे एक कहावत है "विनाश काले विपरीत बुद्धि"और राम सिह के साथ भी यही हो रहा था,
फिर एक दिन तेज दर्द उठा,लेकिन उसदिन राम सिह नही उठ पाया और राम को प्यारा हो गया, माता-पिता बीबी बच्चे बेचारे रोते ही रह गये,फिर भी लोगो के मुँह से ये कहते सुना कि "भोपाजी ने तो दो बार बचाया लेकिन आज तो थान पर पहुच ही नही पाया वरना बावसी बचा ही लेते"
ये "अजीब दांस्तान" है कि लोग एक पढे लिखे व्यक्ति की बात नही मानते और किसी अनपढ व्यक्ति की बात मान कर अपना जीवन दाँव पर लगा देते है,ये एक राम सिह की ही दांस्तान नही है ऐसा पुरे मारवाड की अजीब दांस्तान है,