Saturday 26 September 2020

धरती के भगवान का लालची रूप ??

धरती का भगवान चिकित्सक को कहा जाता है । कहते है चिकित्सक से बैर यानी दुश्मनी नही करनी चाहिए और ना ही झगड़ा फसाद । क्योकि एक चिकित्सक से झगड़ा करने पर सौ चिकित्सक प्रभावित होते है और हजारो लोगो को उसका नुकशान होता है । चिकित्सक के साथ बहुत ही प्रेम और सम्मान से पेश आना चाहिए, ऐसे मैं नही , कुछ समझदार लोग कहते है । क्योकि चिकित्सक धरती का भगवान होता है । 
मेरा तो यह मानना है कि चिकित्सक भी एक इंसान ही होता है । यह भगवान की कृपा है कि मैं भी एक चिकित्सक हुँ । और थोड़ा अजीब सी बात यह है कि आयुर्वेद चिकित्सक हुँ । अजीब इसलिए है कि मुझे कुछ लोग डॉक्टर कहने में भी शर्म महशुस करते है । और सरकार भी जब काम करवाना हो तो डॉक्टर मान लेती है और कुछ लाभ देने का समय आता है तो वैद्य जी को डॉक्टर नही मानती है । जबकि वैद्य और डॉक्टर में सिर्फ भाषा का ही फर्क है हिंदी में दोनों को चिकित्सक ही कहा जाता है और काम भी दोनों एक जैसा ही करते है यानी चिकित्सा ही करते है । 
आज इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आप लोगो के साथ कुछ अजीब अजीब सी दांस्तान पेश कर रहा हूँ । यह सब सच्ची बाते है ।जो मेरे साथ घटित हुई है । हम यहां किसी के नाम और जाति का जिक्र नही करेंगे । सिर्फ फलाना जी ढिमका जी लिखेंगे । जिन लोगो को लेकर मैं बताऊंगा उन्हें तो पता चल ही जायेगा साथ ही आप लोगो को भी घटना का कुछ ना कुछ आभास जरूर होगा । चलो स्टार्ट करते है । 
 भयंकर बारिस हो रही है । एक व्यक्ति मुझे बुलाने मेरे घर पर आता है । आवाज लगाता है कम्पो साब , कम्पो साब । तेज बारिश की वजह से मुझे सुनाई नही देता । मेरे मकान की गली के लोग बाहर आते है और उसे कहते है ये कम्पो साब क्या कह रहा है ये डॉक्टर साहब है । डॉक सा डॉक सा आवाज लगा । या फिर वैधराज जी बोल या फिर गेट की कुंडी बजा । वह वैसा ही करता है । मैं बाहर आता हूँ मुझे कुछ भी पता नही कि उसने मुझे क्या संबोधन किया । उसकी गलती भी नही थी क्योंकि जिस मकान में मैं रह रहा था उसमें मेरे आने से पहले एक कंपाउंडर साहब रहते थे । आने वाला व्यक्ति परेशान सा लगता है । वह कहता है साहब ! मेरे  पिताजी बीमार है तेज बुखार से तप रहे है , जोर जोर से चिल्ला रहे है , नदी नालों की वजह से कोई साधन नही मिल रहा । साहेब मेरे घर चलो बप्पा बीमार है । मैंने कहा :- ज्यादा इमरजेंसी है तो बाहर ले जाओ मेरे पास इमरजेंसी का कोई इलाज नही है । लेकिन उसने बताया कि बारिश की वजह से बाहर नही ले जा सकते कोई साधन नही है । आप एक बार थोड़ा इलाज कर दे फिर बाहर ले जाएंगे । मुझे मेरे चिकित्सक धर्म याद आ गया और मैंने उसे कहा :- तेज बारिश है रुक जाने दे मैं आ जाऊंगा । नही साहब अभी चलो । मैं तैयार हुआ , उसके पास कोई साधन नही था । वह जिस गांव में मेरी पोस्टिंग थी वहां से आया था । मैंने मेरी मोटर साइकिल ली , बरसाती कोट पहना और कुछ भीगते हुए ही उसके साथ रवाना हो गया । तेज बारिश थी उसका घर एक नाले के उस पार था । मोटरसाइकिल आगे नही जा सकती थी पैदल ही जाना पड़ेगा ऐसा उसने बताया । मेरे में भी जोश था कुछ जवानी का और कुछ नई नई नौकरी का । मरीज को कोई तकलीफ ना हो ऐसी भावना कूट कूट कर भरी पड़ी थी ।
नाले में उतर गया कमर तक पानी था , बेग को सिर पर रखा । और जैसे तैसे मरीज के पास पहुँच गया । इलाज किया कुछ देर में मरीज को आराम मिल गया बुखार उतर गया । 
मैं वापसी के लिए रवाना हुआ । उसी नाले के पास कुछ लोग भेड़ बकरी चरा रहे थे उनमें से एक बोला : - "लोभ लालच क्या क्या नही करवाता । फिर भले ही नाले पार करने पड़े या तेज बारिश में भीगना पड़े" 
यह अजीब दांस्तान है   क्या मैं लोभ के वशीभूत था या सेवा करने गया था । क्या धरती का भगवान लालची था ।
इस तरह की और बहुत दांस्तान है । आप बने रहे मेरे साथ फिर मिलते है एक नई दांस्तान के साथ । तब तक के लिए जय श्री श्याम ।

Monday 27 March 2017

लच्छी लक्ष्मी बन गई

बहुत ज्यादा समय नही हुआ है । कुछ साल पहले की ही बात है । आज से करीब आठ साल पहले वह लोगों के लिए लच्छी हुआ करती थी। बहूत ही गरीब थी लेकिन रूप का तो भंडार दे दिया था प्रकृति ने उस बेचारी को, जो उसके लिए खतरा भी था और दुश्मन भी, वह मेहनत और मजदूरी करने में बहुत ही होशियार  थी , कहने का मतलब वह काम करने से जी नही चुराती थी ।

उसको गाँव में कोई ज्यादा नही जानते थे । वह अपनी दुनिया में मस्त थी और मजदूरी करके पेट भरती थी ।
उसका पति भी मजदूरी करता था और दोनों अपनी गृहस्थी की गाड़ी को चला रहे थे ।

जब घर आराम से चल रहा हो और किसी की नजर लग जाये तो कहते है भले भलो के घर उझड़ जाते है।

लच्छी का पति भी किसी की नजर का शिकार हो गया और नशे का आदी हो गया । जब कोई व्यक्ति नशा करने लगता है तो काम धंधे में मन लगाना मुश्किल सा हो जाता है । अब कुछ महत्वांकाक्षा भी बढ़ जाता है। अब पति परमेश्वर को सिर्फ गृहलक्ष्मी के साथ साथ बहुत सारी धनलक्ष्मी की जरुरत महशुस होने लगी ।

जब धन दौलत कमाने की प्रबल इच्छा होती है और वांछित योग्यता ना हो तो मनुष्य गलत काम की ओर कदम बढाता  है । कोई गलत काम करता है तो कोई गलत उपाय करता है ।

गलत उपाय से तात्पर्य है कि टोना टोटका या तंत्र मंत्र का सहारा लेने लगता है । लच्छी का पति भी कुछ इसी प्रकार के काम में पड़ कर तांत्रिको के चक्कर लगाने लगा ।

कमाई करना भी हर किसी के बस की बात नही होती । जो समय का मोल समझता है वह कभी भी जीवन में परेशान नही होता है। जो समय पर अपने जीवन को समझ लेता है वह जीवन को जी लेता है । और जो जीवन को नही समझ पाता वह केवल परेशां होने के सिवाय कर भी क्या सकता है ।जब समय निकल जाता है तो सिर्फ पछताने के सिवाय कुछ मिलता नही है ।

एक दिन तंत्र मंत्र के चक्कर में लच्छी का पति तालाब में डूब कर मर गया । लक्ष्मी पाने के लिए लक्ष्मी पूजन के लिए कमल के फूल लेने तालाब में उतर गया और कमल के जाल में ऐसे पैर फ़सा तो निकल ही नही पाया और पैर की जगह प्राण निकल गए । जिस दिन यह घटना घटी उसी दिन मैंने इस परिवार के बारे में पहली बार जाना था । इससे पहले मेरा कभी भी कोई परिचय नही था ।

लोग बाते कर रहे थे , "बेचारी लच्छी  कितनी मेहनत करती थी पूरा घर सम्भालती थी। दोनों मिल कर आराम से घर चला रहे थे । पता नही क्यो लोगो के बहकावे में आकर कमल के फूल के चक्कर में जीवन से हाथ धो बैठा। अब बेचारी लच्छी कैसे चार चार बच्चो का पेट पालेगी" ।

मेरी कोई खास जिज्ञासा नही थी । रोज ऐसी घटनाएं होती रहती है । मैंने कोई ज्यादा तव्वजो नही दी।
बात आई गई हो गई । कुछ दिन बीत गए । अब अकेली  लच्छी अपने चारों बच्चो का पेट पालने लगी। कुछ दिन कुछ राहत के पैसे मिले थे उनसे काम चलता रहा । लेकिन कब तक काम चलता पापी पेट की आग कभी बुझती ही नही है । अपनी भूख के लिए नही तो माँ को बच्चो की भूख के लिए बाहर जाना शुरू कर दिया । लेकिन उसको क्या मालुम बाहर भी भूखे भेड़िये शिकार की तलाश में घूम रहे है। उसका भी ऐसे लोगो से सम्पर्क  हुआ और मुकाबला भी करना पड़ा ।

गाँव में स्थित राजकीय आयुर्वेद औषधालय में  एक दिन वह आई क्योकि उसकी बच्ची को माता जी का प्रकोप (smallpox)हो गया और वह बुखार के साथ ही साथ बड़े बड़े फफोलो से भर गई। वह उसे लेकर आई । पैसा नही था । जब पैसा नही होता है तो परिचय करना पड़ता है उसने भी अपना परिचय मुझे दिया लेकिन मुझे उससे कोई लेना देना नही था इस तरह के मरीज इस औषधालय में रोज आते रहते है किसी के पैसे दुकान वाला उधार कर लेता है और किसी किसी को मुझे सहयोग करना पड़ता है । लेकिन ऐसा हमेशा सम्भव नही होगा ऐसा कहकर टालना पड़ता है । कुछ लोग ईमानदार होते है वे पैसे चुका देते है लेकिन ज्यादातर लोगो का राम मरा हुआ ही होता है यह औरत गरीब थी लेकिन बेईमान नही लगी ।

इस औरत को पहले जब उसका पति था तब जो मजदूरी आराम से मिल जाती थी वह अब मिलना बहुत मुश्किल हो गई थी। कुछ लोग तो इसलिए काम नही देते थे क़ि पता नही सही काम कर पाएगी या नही और कुछ ये सोचते थे क़ि  पता नही लोग क्या बाते बनाएंगे।

लच्छी के सामने भयंकर आर्थिक संकट था । अब वह सिर्फ उधार की जिंदगी जीने को मजबूर थी। जब चारो तरफ से अन्धेरा ही अँधेरा दिखाई दे तो मानव अपने आपको हारा हुआ ही समझता है ।

उसने मुझे बहुत ही आर्त स्वर में कहा - "डॉ साहब जी ! मेरे पास देने के लिए कुछ भी नही है । मेरी बच्ची की बहुत ही बुरी हालत है आप कुछ इलाज कर दो तो बहुत मेहरबानी होगी। उस दिन मुझे लगा क़ि ये जो सरकारी निशुल्क दवा योजना है वास्तव में बहुत ही सही है और यह ऐसे लोगो के लिए ही आती है । लेकिन सच में इन लोगो तक नही पहुच पाती है । मैंने उस बच्ची को देखा और जो औषधालय में दवा उपलब्ध थी वो उसे दी और कुछ दवा मेडिकल से लाकर भी उसे दी । उसने बाहर की दवा के पैसे पूछे । मैंने कह दिया "जब कभी तेरे पास हो तो दे देना वरना कोई बात नही । मैंने दे दिए है" ।

उस दिन वह चली गई । मुझे भी कोई याद नही रहा । लेकिन वह आई और बोली - "साहेब आपके कितने पैसे हुए थे । आज है मेरे पास लेलो" मैंने कहा  - "मुझे याद नही है , कितने थे । आप इन पैसो से अपने बच्चों के लिये कुछ खाने के लिए ले जाना"। वह नही मान रही थी तब मैंने कहा कि "आज तो कोई बात नही आगे कभी बाहर की दवा हो तो उसके पैसे दे देना"।

ज्यादातर रोग गरीबो को ही होते है । कमजोर शरीर को बुरे लोग और बुरे रोग परेशान करते है । यह यह भूख भी अमीरों के बजाय गरीबो को ही ज्यादा लगती है। राजयक्ष्मा जैसे राजाओं के होने वाले रोग भी आजकल गरीबो को ही होने लगे है । गरीब लच्छी के बच्चे भी  अब इन भयंकर रोगों से कहा तक बचने वाले थे ।सही पौषण न मिलने से और कमजोरी के कारण बीमारियो से घिरे ही रहने लगे ।

एक दिन उसका छोटा बेटा बीमार हो गया उसे दिखाने के लिए मेरे घर पर आये । हालत बहुत ही खराब थी मैंने उसे रेफर कर दिया बोला :- "इसको निमोनिया हो गया है । अभी बाहर लेजाना पड़ेगा ' मेरा इतना बोलना था और उसका तो दम ही निकल गया । वह गिड़गिड़ाने लगी :- साहिब पैसे नही है बाहर ले जाकर दिखाने के , कहाँ ले जाऊंगी । और वह रोने लगी । लेकिन मैं क्या कर सकता था इतनी इमरजेंसी को डील करने की सुविधा यदि आयुर्वेद में होती तो आयुर्वेद औषधालयों में मरीजो की भीड़ लगी होती । इस विभाग में जितना अभाव औषधियों का है या यूँ कहे की यह अभावो से ग्रस्त विभाग है तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । यहां आकर आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी अपने आपको पंगु महशुस करता है । इस तरफ सरकार को भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए । खैर कुछ भी रहा हो मैंने उसे रेफर कर ही दिया । और वह रोते कलपते चली गई ।

तब मुझे लगा कि गरीब का कौन सहारा है । गाँवो में खुले औषधालय तो कोई सहारा बन नही पा रहे । मैं भी दुखी मन से सो गया । सुबह हॉस्पिटल जा रहा था तो लछी का घर भी रस्ते में ही था लोग इकठ्ठा हो रहे थे मेरी  जिज्ञासा बढ़ गई पूछा तो पता चला लच्छी का बेटा आज सुबह ख़त्म हो गया ।

कुछ दिन बाद मैं भी मिलने गया वह फूट फूट कर रोने लगी "मेरा कौन सहारा है .......मैं अब किसके लिए जीऊँगी .......। गरीब को जीने का हक़ नही है साहब !......गरीब का तो कोई सहारा नही होता साहेब।

वह हताश निराश रोती रही मैं भी क्या कर सकता था सिर्फ ढाढस दिलाने के सिवाय क्या कर सकता था ।

मैंने सिर्फ इतना ही कहा:- "तू माँ है । यह कभी मत भूलना"

वह रोते हुए बच्चों को देख कर बिलखने लगी । विवश और लाचार इंसान ज्यादातर गलत कदम उठा लेते है । लेकिन लच्छी का मातृत्व शायद जग गया था ।

फिर एक बड़ा दुःख लेकर लच्छी अब अपना जीवन बिताने के लिए मजबूर थी ।

उसका रूप यौवन सब ख़त्म हो चला था अब वह तीन बच्चों का पालन पौषण का जिम्मा अपने सिर पर उठाये अपनी जीवन की गाड़ी को चला रही है ।

लेकिन उसके  चेहरे की मुस्कुराहट अब गंभीरता से भरी थी और अब चेहरे पर एक आत्मविश्वास की झलक दिखाई दे रही  थी । उसे अब लगने लगा था कि जीवन किसी के सहारे से नही जीया जा सकता है । वह कमर कस कर अब लच्छी से लक्ष्मी बनने को तैयार हो गई थी । क्योंकि गरीबी से लड़ना सबसे बड़ा युद्ध होता है । लच्छी अब युद्ध के लिए तैयार थी ।

जब जीवन भार लगने लगे तब कुछ लोग जीवन लीला समाप्त कर लेते है और लच्छी जैसी कमजोर और असहाय अबला नारी अपने आपको सबल बनाने के लिए तैयार ही नही हुई वह कुछ वर्ष बाद अपने आपको सबल बनाने में सफल भी हुई ।

अजीब दांस्तान यह है कि कुछ लोग अपने जीवन को बुरी हालात में देख कर हार मान लेते है और सुसाइड कर लेते है ऐसे में इस प्रकार की अबला नारी अपने ईमानदारी और कर्मठता से ऊपर उठ कर समाज को सीख दे रही है फिर भी लोग इन्हें अबला कहते है ।

Wednesday 13 April 2016

काळो किशनो.....


          लोग उसे देख कर भाग रहे थे कुछ लोग छुप रहे थे, और किशन सिह  लडखडाता पडता उठता मेरी तरफ ही आ रहा था, काला बदन, गन्दे कपडे, पुरा छः फुट का लम्बा तगडा जवान लेकिन गंदगी से सना हुआ और तो और कपडो मे ही पैसाब किया हुआ बदबू मार रहा था, वह सीधा मेरी तरफ ही आ रहा था,और आकर जोर जोर से रोने लगा – साब ! मेरे से बहुत बडी गलती हो गई, हु .... हु.... हु..... वह रोये जा रहा था  मै ने उससे पिछा छुडाने के लिये  औषधालय को बंद किया और मोटरसाईकल लेकर घर की तरफ रवाना हो गया, छुप छुप कर लोग मेरी ये सब हरकत देख देख कर हँस रहे थे, मै तो उस भयंकर भूत से बचना चाह रहा था, थोडा आगे जाकर रूक गया और उस पागल भूत की हरकते देखने लगा, वह पडता उठता रोता चिल्लाता दुसरी ओर निकल गया तब मै वापिस आ गया, औषधालय खोला और फिर से काम मे लग गया, तब एक ग्रामीण आया और मेरी मजाक बनाता हुआ बोला – डाक्टर साब ! किसना से डर कर, कहा भाग गये थे , मै ने मुस्करा कर जबाव दिया –“ कौन मुँह लगे उस पागल के, इसलिये थोडी देर औषधालय  बंद करके उधर छुप गया था,

           आज मै जो दांस्तान बयान कर रहा हुँ वह सेना का सेवा निवृत जवान किसन सिंह की एक अजीब दांस्तान  है  बडा ही अच्छा और नेक बंदा , फोज मे एक ड्राईवर था अभी अभी रिटायर होकर आया था, एक दम ठाला कोई काम धंधा तो था  नही तो क्या करे यार दोस्तो मे बैठ कर शराब का नशा करने लग गया, कहते है खाली मकान और खाली दिमाग मे शैतान बस जाते है किशना मे भी नशे का शैतान बस गया था

           हमारे देश मे बडा अजीब नियम  है यहाँ पर शराब पीना बहुत ही गंदी बात मानी जाती है लोग शराबियो से बहुत ही नफरत करते है कई प्रकार के गीत भी गाये जाते है जैसे – “दारूडिया न अळ्ग पटको जी अण मे भुंडी आवे बास” लेकिन इसके विपरीत यहाँ की सरकार शराब के ठेके करोडो रूपयो मे देती है और सबसे अजीब यह है कि फोजियो को यह शराब रियायत दर पर मिलती है, अब किशना ठहरा फोजी उसका तो हक बनता है कि वह शराब लाये और पीये, वह भी पीने लगा, शुरू शुरू मे तो कम कम पीता था और जब वह सादा रहता, तो बहुत ही मिलनसार और अच्छी बात करता , लेकिन जब शराब रोजाना पीने लगा तो अब आदत पड गई और हम सब जानते ही आदत तो किसी भी वस्तु की पड जाये तो खराब ही है किशना भी अब आदी हो गया और जब ज्यादा पी लेता, तो उसे कोई ध्यान नही रहता, वह पागलो की तरह इधर उधर भटकता रहता और  लोग उसे काळा काळा कह कर पुकारते, आज काळो किशनो मेरे गले पडने वाला था लेकिन मै बच कर भाग गया, मारवाडी मे काळा का मतलब होता है पागल व्यक्ति, मुलतः यह शब्द गुजराती भाषा से आया है लेकिन अब मारवाड मे आम रूप मे प्रचलित है

          बुरे आदमी से सब बचना या छुपना चाहते है जैसे मै भी पिछा छुडा कर छुप गया था, और जब पागल आदमी गांव गली मे घुमे तो कोई फर्क नही पडता सिर्फ देखकर मजा ही आता है लोग पत्थर मारते  है बच्चे लोग  हो.. हो... करके चिल्ला कर मजे लेते है जैसे सांप दिख जाये तो पत्थर मार कर उसे मार देंगे या भगा देंगे  लेकिन जब सांप बगल मे ही सोये तो नींद नही आती, किशन सिन्ह के परिवार मे भी यह सब चलने वाला नही था, बच्चे तो फिर भी डर के मारे कुछ नही बोलते थे लेकिन पत्नी शांती देवी की शांती भंग होने लगी तो यह सब बर्दास्त नही हो रहा था, रोज झग़डा होने लगा झगडे मे बच्चो को भविष्य खतरे मे पडने लगा और जब बच्चो पर बात आती है तो माँ शेरनी बन जाती है,

          अब किशन सिंह की हालत को देखकर उसकी पत्नी ने विरोध के स्वर तेज कर दिये जब वह उसे मारता तो वो भी उसे जबाव देने लगी लोगो को तो मजा आने लगा कोई उन दोनो को छुडाने के बहाने से जाते और कोई लोग दूर खडे रहकर उनके खेल को देखते और गांव मे तरह तरह की चर्चा होती कि- “शांति ने पत्ति को डंडे से मारा, फिर किशन सिन्ह के प्रति दया दिखा कर कहते –“ बेचारे का सिर फोड दिया” लोग सारा दोष उसकी पत्नी पर ही मढ देते, “पत्ति घर आ गया तो सुहाता नही है ,आजादी छिन गई छिनाल की, अब गुलछरे उडाने का मौका नही मिलता इसलिये बेचारे से झगडा करती है”

          जब पानी सिर से उपर आने लगा तो किशन की पत्नी ने कानून का सहारा लिया कानूनी तौर पर पत्नी पर हाथ उठाना हिंसा है और घरेलू हिंसा मे किशन सिन्ह को थाने की हवा खानी पडी, लोगो ने शांती का यह रूप देख कर चर्चाये शुरू कर दी बाते बनने लगी, चंडी हो गई है शांती तो, घर वालो ने तो शांती नाम रखा था लेकिन यह तो डायन है डायन” लेकिन शांति तो अब अशांत हो ही चुकी थी उसने किशन सिन्ह की पेमेंट का आधा हिस्सा भी अपने नाम करवा लिया,
कानून जितना कठोर है उतना ही नर्म भी है किशन को जमानत मिल गई और वह घर वापिस आ गया लेकिन कहते है ना घर तो बीबी बच्चो से होता है और किशना के बीबी बच्चे तो उससे नाराज थे, वह  बहुत ही समझदारी और मधुर व्यवहार के साथ रहने लगा , लोग उसे बर्गलाते और कहते – तेरी पत्नी ने तेरी सारी इज्जत मिट्टी मे मिला दी” वह गमगीन रहने लगा उदास रहता मेरे पास फिर से आने लगा कहता –“साब !  घर मे और गांव मे मन नही लगता, कहा जाऊ क्या करू कुछ समझ मे नही आता,”
 
           वह मेरे पास रोज आने लगा और उसकी पत्नी ने मुझसे नशा मुक्ति की दवा भी शुरू कर रखी थी वह आता तो मै उसे खूब समझाता कि जीवन मे परिवार ही सब कुछ होता है वह रोने लग जाता कि मेरी इज्जत खराब कर दी मै ने उसे समझाया कि इज्जत तो शराब ने खराब की है तेरी पत्नी और बच्चे तो तुझे बहुत चाहते है तु सही हो जायेगा तो सब कुछ ठीक हो जायेगा वह मेरी  बाते मानने  लगा, दवा लगातार चलती रही

           वह मेरे पास आता और पारिवारिक चर्चा भी करता और कुछ शराब छोडने की दवा भी पुछता – साब ! कोई ऐसी दवा हो तो बताओ मै शराब से मुक्ति चाहता हुँ” सच मे वह सुधरना चाहता था, दवा तो उसकी पत्नी पहले से ही ले जा रही थी मानसिक मनोबल मै बढाता रहा और कई प्रकार की सलाह भी उसे देता रहता था उसे कहता – आप किसी काम मे व्यस्त रहो जब आप व्यस्त रहेंगे तो इस शराब की तरफ मन नही जायेगा”

           अब किशन सिन्ह खेती करने लगा और व्यस्त रहने लगा, वह अब शराब से कोसो दूर है लेकिन अभी भी लोग उसे काळो किशनो ही कहते है और चिडाते भी है – तेरी पत्नी ने तुझे पुलिस से पिटवाया और तु है कि उसकी चाकरी करता है” लेकिन किशन सिन्ह के कोई फर्क नही पडता क्योकि बुराई रूपी दुश्मन पर जीत प्राप्त करने मे अपने ही साथ दे सकते है चाहे रास्ता कठोर ही क्यो ना हो, अब उसकी बीबी और बच्चे भी बहुत खुस है,

            अजीब दांस्तान यह है कि जब पत्ति कुछ गलत काम करता है और पत्नी उसको मना करती है तो लोग गलत काम करने वाले पत्ति को गलत या बुरा नही कहते बल्कि पत्नी पर ही तरह तरह के आरोप लगाते है, और सबसे अजीब तो यह है कि जब व्यक्ति सुधर जाता है तो भी लोगो को हजम नही होता अब सोचने वाली बात यह है कि सच मे काळो कौन है ... किशना या गांव वाले....

Friday 30 October 2015

अंध विस्वास्‌‌‌ या लापरवाही

         दीपावली का दिन था शाम के करीब 6 बजे होंगे मेरे मोबाइल पर एक काल आया  "प्लीज एक बार हमारे घर पर आना"  उस वक्त मै दीपावली पूजन की तैयारी कर रहा था सारा सामान एवम सभी सामग्री रखी हुइ थी और सभी घर वाले तैयार हो गये थे पूजा का मुहुरत गोधुली वेला का ही था मैने थोडा शिकायती लहजे मे कहा “यार ! अभी तक आप लोग उसे यही लेके बैठे हो बाहर दिखाने नही गये “मेरी आवाज सुन कर वह रोते हुये बोला एक बार आप घर पर आओ तो सही”

         मै उसके घर गया तब पता चला कि सब गड़्बड़ हो गया लोग इक्कठे हो रहे थे और एक मार्मिक क्रिंदन सुनाइ दे रहा था एक औरत मुझे सम्बोधित करके बोल रही थी “ अरे डाक सा ! आपने अमृत को बाहर क्यो भेजा हमेशा तो आप ही इलाज करते है इस बाहर भेजने से देखो ये क्या हो गया है, मेरा अमृत ..........."  और  वह जोर जोर से रोने लगी मैंने पलंग पर सो रहे अमृत को चेक किया वह अब इस दुनिया से जा चुका था मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा था मैने अमृत के पापा से पुछा वह भी रो रहा था कुछ बता नही पा रहा था फिर भी उसने हिम्मत करके बताया कि "मै इसे बडे होस्पिटल ले गया था दवा से रियेक्सन हो गया या कोइ भूत प्रेत का हो गया कह नही सकते"
          मै घर वापिस आ गया अब मेरा मन पूजा मे नही लग रहा था फिर भी जो काम थे वे सभी किये मन बैचेन था मेरा मन बार उस बात पर ही अटक रहा था कि क्या भूत प्रेत से भी ऐसा हो सकता है क्या? धिरे धिरे पुरे गांव मे यह खबर फैल गइ कि भूत प्रेत ने गिरिराज के बच्चे की जान ले ली गांवो मे तो बात का बतंगड बन ही जाता है सो बन गया

          अब मुझे पुरी बात याद आ रही थी दो दिन पहले अमृत की मम्मी मेरे पास उसे लेके आइ थी उसको बुखार आ रहा था बहुत तेज बुखार था मेरी समझ मे नही आ रहा था तो मैंने कुछ बुखार उतरने की दवा देकर बाहर लेब मे जांच करवाने भेज दिया था बुखार सामान्य नही लग रहा था इसलिये जल्दी ही बाहर जा कर बताना ऐसा बोल कर उनको भेजा था लेकिन जब आज गिरिराज का फोन आया तब मुझे लगा कि वे लोग उसे बाहर ही नही ले गये पुरी बात की जानकारी अभी भी मुझे नही थी कि वास्तव मे हुआ क्या था पुरे गांव मे तो एक ही बात फैली थी कि भूत ने मार डाला   
                  
          अंध विस्वास इतना भयानक भी हो सकता है मुझे विस्वास नही हो रहा था जब मुझे पुरी बात पता चली तो मेरे होश उड गये इस आधुनिक जमाने मे भी ऐसा हो रहा है 
          जब मैंने मरीज को बाहर दिखाने  के लिये कहा तो वे लोग बच्चे को लेकर जा ही रहे थे कि उनके ही ड्राइवर् ने कहा कि इसे निकाला (टाइफाइड) है तो इसे झाडा (मंत्र) दिलाओ इसलिये वे लोग उसे एक तांत्रिक के पास ले गये तांत्रिक ने बताया कि इस पर ओपरी छाया का असर लग रहा है इस वजह से बुखार नही उतर रहा इसलिये इसे दीपावली को वापिस लेकर आना ,बच्चा दो दिन बुखार मे तड्फता रहा फिर दिपावली के दिन तांत्रिक ने उस पर अपने मंत्रो का प्रयोग किया 

          लेकिन सब असफल हो रहा था झुठ फरेब ज्यादा देर नही चलता, बच्चे की हालत बिगडती जा रही थी उससे कुछ नही हो रहा था  तब उसने फिर एक तीर और फैका कि आज अमावस्या है आज आत्मा बस मे नही आ पायेगी,

          अमृत की मम्मी रो रही थी साथ ही जिद्द कर रही थी कि” डाक सा ने कहा है वैसे ही करो इसकी जांच करवाओ “ लेकिन गिरिराज नही माना अब बच्चा बेहोश हो गया था जब हालत एकदम खराब हो गई,  तब तांत्रिक तो  डरने का ड्रामा कर भाग गया,

           वे उसे सरकारी होस्पिटल ले कर गये ,डाक्टर को दिखाया ,डाक्टर ने चेक किया हालत खराब थी उसने जल्दी  से एक इंजेक्सन लगाया मांस की जगह नस मे लगा दिया कुछ तो जल्दी थी और कुछ चिकित्सक की लापरवाही, चिकित्सक रिजर्वेसन से आया हुआ था, ये जो रिजर्वेशन है ये भी एक प्रकार का भूत ही है चिकित्सक की भयानक लापरवाही से बच्चे को रियेक्सन हो गया और बच्चा वही तत्काल खत्म हो गया,

          मै बार बार सोचता रहा कि बच्चे को किसने मारा भूत ने, घर वालो की लापरवाही ने, या फिर रिजर्वेसन से  आये चिकित्सक ने ? 

          अजीब दांस्तान यह है कि चिकित्सक तो भगवान है , तांत्रिक  बन गये है लोक देवता , और माता पिता “अंध विस्वास” से पुर्ण ....


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Sunday 14 June 2015

पेट दर्द ...का बवन्डर

              एक लडकी को मेरे पास सुबह-सुबह ही ले आये मै मोर्निंग वोक से आया ही था कि वह मरीज घर पर आ गये,बहुत ही तेज पेटदर्द था लडकी रो रही थी उम्र होगी लगभग सोलह-सतरह साल, पांच-चार लोग उसके साथ थे और तरह तरह की बाते कर रहे थे कोई कह रहा था यहाँ पर गलत ही लाये है कल बडे होस्पिटल मे दिखाया था यदि कोई बिमारी होती तो वहाँ नही आती क्या ? इसके कोई लफ़डा(ओपरी छाया) ही लगता है, दुसरा बोला - नही इस प्रकार का पेट दर्द तो उस सुरजे की क्वाँरी लडकी  को हुआ था जो फिर मर ही गई थी और सुना नही था क्या ? उसका किसी से चक्कर चल रहा था,तीसरा बोला--एक वो ट्रेन के निचे कट के मरी थी उसके भी पेटदर्द ही हुआ करता था, बाद मे पता चला था कि वह पेट से थी,
               मैने उसे देखा लडकी को तेज बुखार था मुझे मलेरिया का शक हुआ तो मैने कहा कि इसे मलेरिया हो सकता है इसका खून टेस्ट करना पडेगा, लडकी की माँ तत्काल तैयार हो गई,आज कल मलेरिया के लिये कार्ड आते है डिवाइस और बूफर तुरंत जांच रिपोर्ट आ जाती है गांवो के लिये यह सुविधा देखा जाये तो अच्छी ही है मैने चेक किया तो उसे मलेरिया पोजिटिव आ गया लडकी बिलबिला रही थी कुछ बुखार से तथा कुछ लोगो की बातो से, लोग बार बार एक ही बात कर रहे थे कि इसके कोई बिमारी-बिमारी नही है यह तो ओपरी-छाया के चक्कर मे है इसे किसी भोपा को दिखाओ , लेकिन लडकी की माँ मुझे कह रही थी कि आप इसका इलाज किजिये, अचानक लडकी का भाई बिफर पडा - आप इसे बस कोई छोटी मोटी दवा दे दो बस फिर हम इसे किसी भोपा के पास ले जायेंगे,कल हम इसे बडे होस्पिटल मे दिखा कर  लाये है वहाँ की दवा से तो इसके फर्क नही पडा, बडे होस्पिटल की द्वा असर नही कर रही है इसका मतलब इसके कोई और ही परेसानी है,
              लेकिन अंत मे मेरे समझाने तथा लडकी की माँ के कहने पर उसे मैने दवा दे दीऔर लडकी को कुछ आराम आया और वे उसे ले गये मैं ने दुसरे दिन वापिस आने  का कहा और वे लोग हाँ कह कर चले गये
               बात अजीब इस लिये है कि मलेरिया जैसी जान लेवा बिमारी को भी किसी भूत प्रेत का साया मान कर इलाज नही लेना खतरनाक हो सकता है मलेरिया जान भी ले सकती है तथा हिपेटाइटिस जैसी घातक बिमारी को भी जन्म दे सकती है तथा कोई भी प्रकार के पेटदर्द को गलत समझ लेना कितना शर्मनाक है, लेकिन अज्ञानता और अंधविश्वास का क्या इलाज हो कुछ समझ मे नही आता, अब इस लडकी मे भूत -प्रेत का कोई इतिहास नही था इस लिये कुछ अन्य अफवाह भी उडाई जाने लगी, भूत नही तो फिर कुछ और.. लेकिन बिमारी को नही मानना,पता नही इस माडवाड क्षेत्र मे चिकित्सको से ज्यादा भोपा-बावसी,तांत्रिक क्यो है और  उतने ही उनके दलाल.......,.
               दुसरे दिन वे लोग नही आये,पुरा दिन निकल गया, फिर रात करीब ग्यारह बजे लडकी को फिर मेरे पास लाये लडकी चिल्ला रही थी उसके पेट मे बहुत ही तेज दर्द हो रहा था,पेट पर हाथ लगाते ही चिल्ला रही थी मै ने पुछा- दवा दे रहे है क्या ? लडकी की बडी बहिन बोली - नही इसे हम बावसी के पास ले गये थे,चाचाजी मान ही नही रहे थे इस लिये दवा बंद करके डोरा बंदवाया है ,लाल रंग का एक मोटा सा धागा उसके दाँये हाथ पर बंधा हुआ था मैने उसे वापिस चेक किये कुछ दवा और दी तथा कल दी हुई सभी दवा शुरू करवाई और उस चाचा को बुलाया और उससे पुछा कि - ये सब क्या हो रहा है ? तब वह मुझे समझाने के हिसाब से चुपचाप एक तरफ ले गया और बोला - साब आप आराम से चेक करलो इसके मलेरिया तो नही है हमने बडे होस्पिटल मे चेक करवाया था वहा पर तो नही आया, आप के पास आ गया ये सब लफडा और ही है साब !  इस लडकी का किसी लडके से चक्कर चल रहा होगा और शायद यह प्रिगनेंट हो गयी है , आप इसकी सोनोग्राफी करवाओ आप को पता चल जायेगा, मुझे गुस्सा आ गया मैने कहाँ - तेरा दिमाग खराब हो गया है बडे होस्पिटल मे मलेरिया टेस्ट नही करवाया होगा आप लोगो ने और यदि इसके भूत नही तो अब ये.. तुझे शर्म नही आती तु क्या कह रहा है,तेरी बेटी जैसी है ये लडकी, लेकिन उस ढीठ  के कुछ फर्क नही पडा साथ ही उस लडकी का बडा भाई भी कुछ इसी तरह से मुझे समझाने लगा - साब ! कल सुबह आप सोनोग्राफी करवालो , मैं थोडा नरम पड गया मैने उन्हे समझाया कि आप चिंता मत करो यह ठीक हो जायेगी और इसका पेटदर्द उस प्रकार का नही है आप टेंसन मत करो बस आप तो इलाज पुरा ले लो, यदि सुबह तक फर्क नही पडेगा तो कल इसकी सोनोग्राफी भी करवा लेंगे, यहाँ तो यह व्यवस्था है नही ,शहर भेज कर कल करवा लेंगे अभी इलाज करने दो,
                लडकी की माँ बार - बार इलाज का कह रही थी वही जिद्द करके लायी थी मै ने फिर उनसे पुछा-- एक बात यह बताओ कि आप ऐसा क्यो सोच  रहे हो तो वे बताने लगे कि - कौशिक साब ये क्वाँरी है और क्वाँरी लडकी के पेट दर्द ...वे एक दुसरे को देखने लगे फिर एक बोला-. हमारी समझ मे तो ....वह फिर चुप हो गया....साब !क्वाँरी है इसलिये गलत गलत विचार आ जाते है और फिर भोपा ने कह दिया कि इसको डाक्टर को दिखाओ, मेरा काम नही है, तो हम डर गये साब !, इसलिये हमने ऐसा सोच लिया , मैने फिर पुछा - तो फिर ये लोगो के सामने भोपा के ले जाने का क्या चक्कर है  इसे उसके पास क्यो चक्कर कटा रहे हो, वह इस लिये कि कुछ इधर उधर घुमते रहे तो बदनामी ना हो . मेरा सिर चकरा गया कि कैसे - कैसे लोग है अपनी ही लडकी पर इलाज के नाम पर सिर्फ भाग -दौड,
                दवा अपना काम कर रही थी और लडकी का रोना चिल्लाना कुछ कम हो गया, उन सब को मैंने समझाया कि फालतू की बातो मे अपना जीवन बर्बाद नही करना चाहिये इसका पुरा इलाज कराना यह ठीक हो जायेगी,
                अजीब दास्तान है कि जवान लडकी को अंदरूनी कोई रोग हो जाये तो सिर्फ वही एक बात हो सकती है क्या ? बडी अजीब दास्तान है ये, यह सिर्फ एक क्वाँरी लडकी की कहानी नही है इस क्षेत्र मे ऐसी हजारो कहानियाँ मिल जायेगी, कई लडकिया मरने के बाद बदनाम होती है कोई जिंदा रह कर बदनामी का दंश झेलती है 

Monday 5 January 2015

भोपा - बावसी

            उसे शायद मरना ही था,कहते है जब किसी की मौत आती है तो जीवन के सारे रास्ते अपने आप ही बंद हो जाते है,फिर बस मरना ही पडता है, रामसिह अधेड उम्र का बडा ही नेक दिल,हंसमुख,मिलनसार व्यक्ति था ,बडा ही पुजा पाठी ,साथ ही घोर अंधविश्वासी था, अपने खेत पर बने कुए पर ही झोपडी बना कर रहता था,नये मकान भी वही बना रहा था, दर असल वह इस इलाके का नही था, रेलवे मे काम करता था फिर कोइ सस्ती जमीन मिल गई उसे खरीद ली और कुआ बनाकर वही रहने लगा,
            वह मेरे पास अक्सर आता रहता था,चिकित्सा की उसे कभी भी जरूरत नही पडती थी वह बडा मेहनत करने वाला,योग- कसरती तथा आत्मविश्वासी था, आता तो कभी स्वस्थ रहने के उपाय पूछ्ता कभी कोई धार्मिक चर्चा करता रहता, कभी कभार अपने माता -पिता एवम बच्चो को दवा दिलाने के काम से आता रहता था,लेकिन स्वम बडा ही निरोग था
            मै उसे धर्म का यथार्थ अर्थ बताता लेकिन उसके सही बात कम तथा फालतू बाते ही ज्यादा दिमाग मे बैठी थी वह वे फालतू बाते मुझे बताने की कोशीश करता कई बार तो बहस भी कर लेता,मैने उसे बहुत समझाया कि धर्म का मतलब अच्छा काम करने से है लेकिन उसके कोई भी बात समझ मे नही आती थी,वह लड-झगड के चला जाता था,वह बडा ही संत प्रकृति का था कुछ दिन बाद क्षमा याचना करता हुआ वापिस आ जाता था,
            संतो महात्माओ एवम भोपा-बावसी से उसे कुछ ज्यादा ही लगाव था,कई भोपाओ के पास उसका आना-जाना लगा रहता था,भोपा उन लोगो को कहते है जो किसी ऐसे स्थान पर पूजा करते है जहा पर किसी बलिदानी पुरूष या देवी देवता का मंदिर बना हुआ हो, मारवाड मे भोपाओ का बडा ही रुतबा है कई संत भोपा तो सरकार मे मंत्री तक बने हुये है, बावसी मतलब जिसकी भोपा पूजा करता है वो देवता या बलिदानी व्यक्ति बावसी कहलाता है, इन भोपाओ मे कथित रूप से इन देवि देवताओ की आत्मा प्रवेश कर जाती है और फिर ये लोगो का भविष्य बताते है,इन भोपाओ के चक्कर मे राम सिह भी था,
            रामसिह उंनसे भी धर्म चर्चा करता था उसी धर्म चर्चा के बलबुते वह मुझसे बहस करता रहता था,वे लोग उसे समझाते कि बिमारिया पापो का फल है वह कहता था कि जितनी भी बिमारिया है सब पापो की सजा है अतः बिमारियो का इलाज नही करवाना चाहिये,पाप समाप्त होते ही बिमारिया अपने आप ठीक हो जाती है यदि उपचार लिया तो पाप शेष रह जाते है और रोग दुबारा हो जाते है और आप जानते ही हो पापो की सजा तो भुगतनी ही पडती है,मै उसे खूब समझाता कि " मर्ज,कर्ज,और दुश्मन को पालना नही चाहिये," लेकिन उसे समझ मे नही आता था,
            एक दिन रामसिह छाती पकडे आया और बोलने लगा- "साब !आज कोई बडा पाप फूट रहा है छाती बहुत दर्द कर रही है"  मैने उसे समझाया कि मुझे चेक-अप करने दे ,लेकिन वह नही माना उसकी पत्नी के समझाने पर वह चेक-अप के लिये तैयार हुआ, वरना वह तो भोपा के पास ले जाने की जिद्द कर रहा था,मैने चेक किया तो ब्लडप्रेशर 200mm of hg आया धडकन भी बढ रही थी, मैने उसे दवा लेने की सलाह दी और कहा कि ये हार्ट अटेक है इसका इलाज करवाना बहुत जरूरी है लेकिन वह तो एक ही बात पर टिका हुआ था कि "मुझे बावसी के थान पर ले चलो, भोपा जी के पास ही मेरा ईलाज है"
            उसके घरवाले उसे भोपा के पास ले गये, एक घंटे बाद वह आराम से चल कर मेरे पास आया और स्वस्थ लग रहा था और कुछ व्यंग भरे लहजे मे बोला-"देखा साब!मै ठीक हो गया, ये सब पापो की सजा है मेरा दिल बिल्कुल सही है,आप बेवजह ही अटेक आ गया  कहकर डरा रहे थे" उसके साथ वाले भी भोपाजी का गुणगान कर रहे थे- "भोपा जी के पास गये और उन्होंने एक मंत्र फूंका और दर्द तो छू मनतर हो गया" इतना कह कर सब जोर से हंस पडे,
            यह जीवन बडा ही अनमोल है हम इस जीवन को बचाये रखने के लिये सदैव प्रयास रत रहते है लेकिन कई बार किसी अंधविश्वास या गलत सलाह से जीवन को खतरे मे डाल लेते है फिर जो परिणाम निकलता है वह खतरनाक होता है,
            दुसरे दिन रामसिह का लडका आया, रो रहा था कह रहा था कि "पापा को आज फिरसे तेज दर्द हुआ था पुरे पसीने पसीने हो गये थे लेकिन आपके पास आने की बजाय वे भोपा जी के थान पर ही गये है आप उन्हे समझाओ' लेकिन ऐसे आंधविश्वासी को कौन समझाये , संस्कृत मे एक कहावत है "विनाश काले विपरीत बुद्धि"और राम सिह के साथ भी यही हो रहा था,
            फिर एक दिन तेज दर्द उठा,लेकिन उसदिन राम सिह नही उठ पाया और राम को प्यारा हो गया, माता-पिता बीबी बच्चे बेचारे रोते ही रह गये,फिर भी लोगो के मुँह से ये कहते सुना कि "भोपाजी ने तो दो बार बचाया लेकिन आज तो थान पर पहुच ही नही पाया वरना बावसी बचा ही लेते"
            ये "अजीब दांस्तान" है कि लोग एक पढे लिखे व्यक्ति की बात नही मानते और किसी अनपढ व्यक्ति की बात मान कर अपना जीवन दाँव पर लगा देते है,ये एक राम सिह की ही दांस्तान नही है ऐसा पुरे मारवाड  की  अजीब दांस्तान है,
             
            

Monday 1 December 2014

सुगली

     सुगली का मतलब होता है गंदी औरत, उसे देख कर मै हैरान था इतनी गंदी सी सुरत और गंदे से कपडे उसमे से गंदी सी बदबू आरही थी , कोई भी उसकेपास बैठना पसंद नही करता था, जब वह होस्पिटल मे आई तो उसकी हालत बहुत ही खराब थी सिर्फ हड्डी का ढांचा लग रही थी मैंने पुछा कौन हो तुम ? वह कुछ बोलती  उससे पहले ही और लोग बोलने लगे “ सुगली है सा सुगली है.......” मैने पुछा” ‌क्या मतलब ? तो लोगो ने बताया “ साहेब इसके वो सुगली बिमारी है जो एक दुसरे मे फैलती है इस लिये इससे कोइ भी बात नही करता ये हमेशा बीमार ही रहती है”
        मैंने उसी से पुछा- कौन हो तुम ? वह मेरी तरफ देखने लगी एक दम दीन हीन सी , होठ फटे हुये, गंदे से दांत ,थोडा सा मुस्कुराई और बोली- नही पह्चाना साहेब? मै सुगना , तीन चार बरस पहले मेरे पति को लेकर आती थी , उनको टी.बी हो गई थी और आपने उदैपुर भेजा था” मैंने दिमाग पर जोर दिया ,वह फिर बोली “कुछ याद आया ? मै चुप ही रहा वह फिर बोली “वह ठीक हो जाता लेकिन साब उसने शराब को नही छोडा , साब ! शराब उसे खा गई ,मै बर्बाद हो गई  .........” और वह रोने लगी;
        “ अरे साब ! ये तो काली (पगली) है”  एक आदमी मुझे समझाने लगा “इसकी बातो मे मत आना ये तो सुगली औरत  है इसी ने मार दिया अपने पति को” , मै चुपचाप सुन रहा था वह बोलता ही जा रहा था “ जब से वह इसको परणा (विवाह)  के लाया था तब से ही बिमार रहने लगा था ये ही खा गई साब उसको , वह आद्मी इस औरत पर पुरा आरोप मढ रहा था लेकिन सचाई क्या थी ये मुझे अब समझ मे आ रही थी मै उसे पहचान गया था पुरी कहानी मेरी आंखो के सामने फिल्म की तरह आ गई
          जब मै नया नया इस गांव मे आया ही था उसी समय की बात है, सभी अनपड लोग थे लग भग लोग आदिवासी(ट्राइबल)  कोइ भी ढंग से हिंदी नही बोल पाते थे और ना ही समझ पाते थे  मै जब नाम पता  पुछता तो कोई भी ढंग से नही बता पाते थे  , लेकिन ये औरत ही एक ऐसी थी जो अपना पुरा परिचय दे देती थी “ मेरा नाम सुगना है सा मेरे पति का नाम नारायन है जाति मैणा  उम्र फला फला ..... सब झट पट बता देती थी , बहुत ही सुंदर एकदम स्वस्थ , लेकिन पति हमेशा बीमार ही रह्ता था वह उसे बार बार होस्पिटल लेकर आती थी मै जब भी उसे मजाक मे कहता कि इस बीमार आदमी के पिछे क्यो जीवन बर्बाद कर रही है छोड इसे और दुसरी शादी करले तब वह गुस्से मे कहती कि सीता मॉ की कसम मर जाउंगी लेकिन पराये आदमी के बारे मे सोच भी नही सकती, साब ! दुबारा ऐसी बाते मुझसे मजाक मे भी मत करना, मैंने उसे फिर छेडा “अच्छा तो नारायन बता कहा से लाया है इसे .... वह फिर चिड गई “ शादी करके लाया है उठा के थोडे ही लाया है “
           इतनी मासूम थी सुगना, छोटी उम्र, बडी उम्र का पति लेकिन इतनी खुश और बेहद समर्पित, नारायन को टी. बी. हो गई मैंने उसे उद्यपुर रेफर कर दिया मेरी नियुक्ती आयुर्वेदिक औषधालय मे थी और गांवो मे औषधालयो की बहुत बुरी हालत है जांच की सुविधा तो इस इलाके के स्वास्थ्य केंद्र पर भी नही है तो फिर आयुर्वेदिक मे तो क्या कहना,  मुझे उसके एच.आइ.वी. का भी शक हो रहा था मैंने नारायन को सचेत भी किया  था लेकिन शायद उसने मेरी बात नही मानी,और बिमारी बढती गई होगी और खुद के साथ सुगना को भी मौत के मुह मे ढकेल कर चला गया  
           सुगना की रिपोर्ट निकालने उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा , रिपोर्ट पोजिटिव आइ , उसे ए.आर.टी.सेंटर जोधपुर भेजने की व्यवस्था की और उसका इलाज शुरु किया गया
           लेकिन मै यह सोचने पर मजबूर था कि किसकी गलती थी? इस जहाँ की ये "अजीब दास्तान" है कि लोग किसे "सुगली" कह रहे थे और सच मे गंदा कौन था ? सोचो ! सुगना या नारायन ????