Saturday 22 November 2014

फांफी

 उसे पूरा गांव ही ”फांफी” कहता था, फांफी का तात्पर्य है फैंकने वाला अर्थात झुठ बोलने वाला , वह लंबी लंबी डींगे हाँकता था ,कहता था कि कुत्ते के पिल्ले को चील आकाश मे लेकर उड गई और वह यहा तक कह देता था कि एक गधा जंगल से सामान लेकर गुजर रहा था कि बरसात आगई, बरसात की वजह से वह गधा जल कर भस्म हो गया, किसी को भी उसकी बात पर यकीन नही होता था लेकिन लोग उसकीहर बात का लुफ्त उठाते और मजे लेते ,
                      उससे मेरी मुलाकात बस मे हुई थी जब मै पहली बार इस गांव मे आया था वह निसंतान था , लोग उसे कह्ते थे इतना झुठ मत बोला कर , अरे तु झुठ ना बोलता तो तेरे भी बच्चे होते और आज तु दादा जी होता, लेकिन वह थोडा गम्भीर होकर कहता- मै झुठ नही बोलता यह तो आप लोगो का अल्प ज्ञान है इसलिये झुठ लगती है जब मेरी पहेली का अर्थ समझोगे तब मेरी बाते झुठ नही लगेंगी ,
                      वह बहूत ही पत्नी भक्त और आराम पसंद व्यक्ती था उसे अस्थमा रोग था अत दवा लेने आता तब अक्सर मुलाकात हो ही जाती थी , उसकी पत्नी हमेशा पति सेवा मे तत्पर रहती थी उसको गुस्सा भी आता था लेकिन पति पर नही अपने आप पर, वह अक्सर मुझसे कहती थी – डाक्टर बाबु ! यह बुढापा बहुत तंग करने लगा है मै मेरे पति को एक संतान दे देती तो मै अपने आप को सौभाग्यशाली समझती, लेकिन फांफी बीच मे ही बोल पडता – डॉक्टर साब ! आप लोग कहते हो ना “ कम संतान –सफर आसान “  अरे मै तो यह कहता हू “ जो है निसंतान वह सुखी इंसान”, इतना सुनकर सभी हंस पडते , लेकिन वह गंभीर हो जाता और कहता – यह हंसने की बात नही है मै सत्य कह रहा हु जो निसंतान है वे वास्तव मे सुखी है , लोग कहते है संतान बिना तेरा उद्धार नही होगा – तु नरक मे जायेगा लेकिन मै कहता हुँ मरने के बाद चाहे कही पर भी जाये जिते जी तो नरक नही भुगतना पडेगा , जिसके संतान है उन बुजुर्गो की हालत तो देखो सांप छछुंदर की सी हो रही है बेचारे किसी से अपने दुखडे कह भी नही सकते , मेरे भाई के चार संतान है कहता फिरता था राम लक्ष्मन है और मै हुँ दशरथ , वह दशरथ तो राम को प्यारा हो गया और बेचारी कौशल्या की हालत उन कलयुगी रामो ने मंथरा जैसी बना दी है वे चारो परस्पर पर लड़ कर कंस  प्रतीत हो रहे है अरे !  हमे तो कोई सहानूभुती तो दिखाता है उनसे तो कोई सीधे मुँह बात भी नही करता ,
                       उसकी पत्नी कुछ उलाहना सा देती हुई कहती – “ तुम कैसी बाते करते हो ? पुत्रवान तो भाग्यशाली होता है अपना भाग्य जोर नही खाया तो गप्पे हाँकने लगे , इतना झूठ तो मत बोलो कि पुत्रवान जीते जी नरक भोगता है , पुत्रवान तो मरने के बाद भी स्वर्ग का आनंद भोगता है , और कुछ गंभीर होकर विचारो मे खो जाती और बुदबुदाती – हमारा ऐसा सोभाग्य कहा ?”
                         कुछ दिन बाद पता चला कि “ फांफी “ चल बसा , पुरा गांव उदास और गमगीन रहा एक मिलन सार हँसोड़े आदमी की कमी खल रही थी,
                          फांफी की भाभी भी कुछ गम्भीर रूप से बीमार थी उसको दवा दिलाने कोई नही आता ,बेचारी विधवा अकेली ही आती और बहाने बनाती कि आज बड़ी बहू तो वहाँ गई है छोटी का बच्चा रो रहा था इसलिये अकेली ही आई हुँ ,लेकिन उसकी बातो से स्पष्ट पता चल रहा था कि वह चार बेंटो की माँ होकर भी अकेली थी,
                           एक दिन कुछ ज्यादा ही हालत गम्भीर हो गई तो दवा देने उसके घर पर ही जाना पड़ा , मैंने परिचारक को साथ लिया उसके घर गांव से थोडा दुर नदी के पास थे वहा पहुँचते ही मेरी नाक सिकुड़्ने लगी ऐसा लगा कि अभी दम घुटेगा, बुढिया का मकान मल मुत्र से सड़ रहा था पैरो पर सुजन आकर मवाद निकल रही थी पीठ पर घाव पड़ गये थे , लेकिन वह अकेली पड़ी चिल्ला रही थी उसके पास कोई नही था एक बच्ची जो हमे बुलाकर लाई थी वह भी चली गई हम दोनो एक दुसरे को देखने लगे  और मैने कहा – यह हालत नरक से कम है क्या ?

                       अचानक तेज बिजली कड़की और बरसात शुरु होने लगी थी दवा देकर हम दोनो चल पड़े , भीगते भीगते घर आ रहे थे कि हम यह देख कर आश्चर्य चकित रह गये कि बरसात से एक गधा जल रहा था क्योकि गधे की पीठ पर चूने के पत्थर थे जो पानी गिरने की वजह से उफनते जा रहे थे और चूने की गर्मी से गधा पड़ा पड़ा तड़्फ रहा था और देखते ही देखते भस्म हो गया , उस दिन मुझे “फांफी” की प्रत्येक गप्प सच्ची लग रही थी,