Friday 30 October 2015

अंध विस्वास्‌‌‌ या लापरवाही

         दीपावली का दिन था शाम के करीब 6 बजे होंगे मेरे मोबाइल पर एक काल आया  "प्लीज एक बार हमारे घर पर आना"  उस वक्त मै दीपावली पूजन की तैयारी कर रहा था सारा सामान एवम सभी सामग्री रखी हुइ थी और सभी घर वाले तैयार हो गये थे पूजा का मुहुरत गोधुली वेला का ही था मैने थोडा शिकायती लहजे मे कहा “यार ! अभी तक आप लोग उसे यही लेके बैठे हो बाहर दिखाने नही गये “मेरी आवाज सुन कर वह रोते हुये बोला एक बार आप घर पर आओ तो सही”

         मै उसके घर गया तब पता चला कि सब गड़्बड़ हो गया लोग इक्कठे हो रहे थे और एक मार्मिक क्रिंदन सुनाइ दे रहा था एक औरत मुझे सम्बोधित करके बोल रही थी “ अरे डाक सा ! आपने अमृत को बाहर क्यो भेजा हमेशा तो आप ही इलाज करते है इस बाहर भेजने से देखो ये क्या हो गया है, मेरा अमृत ..........."  और  वह जोर जोर से रोने लगी मैंने पलंग पर सो रहे अमृत को चेक किया वह अब इस दुनिया से जा चुका था मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा था मैने अमृत के पापा से पुछा वह भी रो रहा था कुछ बता नही पा रहा था फिर भी उसने हिम्मत करके बताया कि "मै इसे बडे होस्पिटल ले गया था दवा से रियेक्सन हो गया या कोइ भूत प्रेत का हो गया कह नही सकते"
          मै घर वापिस आ गया अब मेरा मन पूजा मे नही लग रहा था फिर भी जो काम थे वे सभी किये मन बैचेन था मेरा मन बार उस बात पर ही अटक रहा था कि क्या भूत प्रेत से भी ऐसा हो सकता है क्या? धिरे धिरे पुरे गांव मे यह खबर फैल गइ कि भूत प्रेत ने गिरिराज के बच्चे की जान ले ली गांवो मे तो बात का बतंगड बन ही जाता है सो बन गया

          अब मुझे पुरी बात याद आ रही थी दो दिन पहले अमृत की मम्मी मेरे पास उसे लेके आइ थी उसको बुखार आ रहा था बहुत तेज बुखार था मेरी समझ मे नही आ रहा था तो मैंने कुछ बुखार उतरने की दवा देकर बाहर लेब मे जांच करवाने भेज दिया था बुखार सामान्य नही लग रहा था इसलिये जल्दी ही बाहर जा कर बताना ऐसा बोल कर उनको भेजा था लेकिन जब आज गिरिराज का फोन आया तब मुझे लगा कि वे लोग उसे बाहर ही नही ले गये पुरी बात की जानकारी अभी भी मुझे नही थी कि वास्तव मे हुआ क्या था पुरे गांव मे तो एक ही बात फैली थी कि भूत ने मार डाला   
                  
          अंध विस्वास इतना भयानक भी हो सकता है मुझे विस्वास नही हो रहा था जब मुझे पुरी बात पता चली तो मेरे होश उड गये इस आधुनिक जमाने मे भी ऐसा हो रहा है 
          जब मैंने मरीज को बाहर दिखाने  के लिये कहा तो वे लोग बच्चे को लेकर जा ही रहे थे कि उनके ही ड्राइवर् ने कहा कि इसे निकाला (टाइफाइड) है तो इसे झाडा (मंत्र) दिलाओ इसलिये वे लोग उसे एक तांत्रिक के पास ले गये तांत्रिक ने बताया कि इस पर ओपरी छाया का असर लग रहा है इस वजह से बुखार नही उतर रहा इसलिये इसे दीपावली को वापिस लेकर आना ,बच्चा दो दिन बुखार मे तड्फता रहा फिर दिपावली के दिन तांत्रिक ने उस पर अपने मंत्रो का प्रयोग किया 

          लेकिन सब असफल हो रहा था झुठ फरेब ज्यादा देर नही चलता, बच्चे की हालत बिगडती जा रही थी उससे कुछ नही हो रहा था  तब उसने फिर एक तीर और फैका कि आज अमावस्या है आज आत्मा बस मे नही आ पायेगी,

          अमृत की मम्मी रो रही थी साथ ही जिद्द कर रही थी कि” डाक सा ने कहा है वैसे ही करो इसकी जांच करवाओ “ लेकिन गिरिराज नही माना अब बच्चा बेहोश हो गया था जब हालत एकदम खराब हो गई,  तब तांत्रिक तो  डरने का ड्रामा कर भाग गया,

           वे उसे सरकारी होस्पिटल ले कर गये ,डाक्टर को दिखाया ,डाक्टर ने चेक किया हालत खराब थी उसने जल्दी  से एक इंजेक्सन लगाया मांस की जगह नस मे लगा दिया कुछ तो जल्दी थी और कुछ चिकित्सक की लापरवाही, चिकित्सक रिजर्वेसन से आया हुआ था, ये जो रिजर्वेशन है ये भी एक प्रकार का भूत ही है चिकित्सक की भयानक लापरवाही से बच्चे को रियेक्सन हो गया और बच्चा वही तत्काल खत्म हो गया,

          मै बार बार सोचता रहा कि बच्चे को किसने मारा भूत ने, घर वालो की लापरवाही ने, या फिर रिजर्वेसन से  आये चिकित्सक ने ? 

          अजीब दांस्तान यह है कि चिकित्सक तो भगवान है , तांत्रिक  बन गये है लोक देवता , और माता पिता “अंध विस्वास” से पुर्ण ....


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Sunday 14 June 2015

पेट दर्द ...का बवन्डर

              एक लडकी को मेरे पास सुबह-सुबह ही ले आये मै मोर्निंग वोक से आया ही था कि वह मरीज घर पर आ गये,बहुत ही तेज पेटदर्द था लडकी रो रही थी उम्र होगी लगभग सोलह-सतरह साल, पांच-चार लोग उसके साथ थे और तरह तरह की बाते कर रहे थे कोई कह रहा था यहाँ पर गलत ही लाये है कल बडे होस्पिटल मे दिखाया था यदि कोई बिमारी होती तो वहाँ नही आती क्या ? इसके कोई लफ़डा(ओपरी छाया) ही लगता है, दुसरा बोला - नही इस प्रकार का पेट दर्द तो उस सुरजे की क्वाँरी लडकी  को हुआ था जो फिर मर ही गई थी और सुना नही था क्या ? उसका किसी से चक्कर चल रहा था,तीसरा बोला--एक वो ट्रेन के निचे कट के मरी थी उसके भी पेटदर्द ही हुआ करता था, बाद मे पता चला था कि वह पेट से थी,
               मैने उसे देखा लडकी को तेज बुखार था मुझे मलेरिया का शक हुआ तो मैने कहा कि इसे मलेरिया हो सकता है इसका खून टेस्ट करना पडेगा, लडकी की माँ तत्काल तैयार हो गई,आज कल मलेरिया के लिये कार्ड आते है डिवाइस और बूफर तुरंत जांच रिपोर्ट आ जाती है गांवो के लिये यह सुविधा देखा जाये तो अच्छी ही है मैने चेक किया तो उसे मलेरिया पोजिटिव आ गया लडकी बिलबिला रही थी कुछ बुखार से तथा कुछ लोगो की बातो से, लोग बार बार एक ही बात कर रहे थे कि इसके कोई बिमारी-बिमारी नही है यह तो ओपरी-छाया के चक्कर मे है इसे किसी भोपा को दिखाओ , लेकिन लडकी की माँ मुझे कह रही थी कि आप इसका इलाज किजिये, अचानक लडकी का भाई बिफर पडा - आप इसे बस कोई छोटी मोटी दवा दे दो बस फिर हम इसे किसी भोपा के पास ले जायेंगे,कल हम इसे बडे होस्पिटल मे दिखा कर  लाये है वहाँ की दवा से तो इसके फर्क नही पडा, बडे होस्पिटल की द्वा असर नही कर रही है इसका मतलब इसके कोई और ही परेसानी है,
              लेकिन अंत मे मेरे समझाने तथा लडकी की माँ के कहने पर उसे मैने दवा दे दीऔर लडकी को कुछ आराम आया और वे उसे ले गये मैं ने दुसरे दिन वापिस आने  का कहा और वे लोग हाँ कह कर चले गये
               बात अजीब इस लिये है कि मलेरिया जैसी जान लेवा बिमारी को भी किसी भूत प्रेत का साया मान कर इलाज नही लेना खतरनाक हो सकता है मलेरिया जान भी ले सकती है तथा हिपेटाइटिस जैसी घातक बिमारी को भी जन्म दे सकती है तथा कोई भी प्रकार के पेटदर्द को गलत समझ लेना कितना शर्मनाक है, लेकिन अज्ञानता और अंधविश्वास का क्या इलाज हो कुछ समझ मे नही आता, अब इस लडकी मे भूत -प्रेत का कोई इतिहास नही था इस लिये कुछ अन्य अफवाह भी उडाई जाने लगी, भूत नही तो फिर कुछ और.. लेकिन बिमारी को नही मानना,पता नही इस माडवाड क्षेत्र मे चिकित्सको से ज्यादा भोपा-बावसी,तांत्रिक क्यो है और  उतने ही उनके दलाल.......,.
               दुसरे दिन वे लोग नही आये,पुरा दिन निकल गया, फिर रात करीब ग्यारह बजे लडकी को फिर मेरे पास लाये लडकी चिल्ला रही थी उसके पेट मे बहुत ही तेज दर्द हो रहा था,पेट पर हाथ लगाते ही चिल्ला रही थी मै ने पुछा- दवा दे रहे है क्या ? लडकी की बडी बहिन बोली - नही इसे हम बावसी के पास ले गये थे,चाचाजी मान ही नही रहे थे इस लिये दवा बंद करके डोरा बंदवाया है ,लाल रंग का एक मोटा सा धागा उसके दाँये हाथ पर बंधा हुआ था मैने उसे वापिस चेक किये कुछ दवा और दी तथा कल दी हुई सभी दवा शुरू करवाई और उस चाचा को बुलाया और उससे पुछा कि - ये सब क्या हो रहा है ? तब वह मुझे समझाने के हिसाब से चुपचाप एक तरफ ले गया और बोला - साब आप आराम से चेक करलो इसके मलेरिया तो नही है हमने बडे होस्पिटल मे चेक करवाया था वहा पर तो नही आया, आप के पास आ गया ये सब लफडा और ही है साब !  इस लडकी का किसी लडके से चक्कर चल रहा होगा और शायद यह प्रिगनेंट हो गयी है , आप इसकी सोनोग्राफी करवाओ आप को पता चल जायेगा, मुझे गुस्सा आ गया मैने कहाँ - तेरा दिमाग खराब हो गया है बडे होस्पिटल मे मलेरिया टेस्ट नही करवाया होगा आप लोगो ने और यदि इसके भूत नही तो अब ये.. तुझे शर्म नही आती तु क्या कह रहा है,तेरी बेटी जैसी है ये लडकी, लेकिन उस ढीठ  के कुछ फर्क नही पडा साथ ही उस लडकी का बडा भाई भी कुछ इसी तरह से मुझे समझाने लगा - साब ! कल सुबह आप सोनोग्राफी करवालो , मैं थोडा नरम पड गया मैने उन्हे समझाया कि आप चिंता मत करो यह ठीक हो जायेगी और इसका पेटदर्द उस प्रकार का नही है आप टेंसन मत करो बस आप तो इलाज पुरा ले लो, यदि सुबह तक फर्क नही पडेगा तो कल इसकी सोनोग्राफी भी करवा लेंगे, यहाँ तो यह व्यवस्था है नही ,शहर भेज कर कल करवा लेंगे अभी इलाज करने दो,
                लडकी की माँ बार - बार इलाज का कह रही थी वही जिद्द करके लायी थी मै ने फिर उनसे पुछा-- एक बात यह बताओ कि आप ऐसा क्यो सोच  रहे हो तो वे बताने लगे कि - कौशिक साब ये क्वाँरी है और क्वाँरी लडकी के पेट दर्द ...वे एक दुसरे को देखने लगे फिर एक बोला-. हमारी समझ मे तो ....वह फिर चुप हो गया....साब !क्वाँरी है इसलिये गलत गलत विचार आ जाते है और फिर भोपा ने कह दिया कि इसको डाक्टर को दिखाओ, मेरा काम नही है, तो हम डर गये साब !, इसलिये हमने ऐसा सोच लिया , मैने फिर पुछा - तो फिर ये लोगो के सामने भोपा के ले जाने का क्या चक्कर है  इसे उसके पास क्यो चक्कर कटा रहे हो, वह इस लिये कि कुछ इधर उधर घुमते रहे तो बदनामी ना हो . मेरा सिर चकरा गया कि कैसे - कैसे लोग है अपनी ही लडकी पर इलाज के नाम पर सिर्फ भाग -दौड,
                दवा अपना काम कर रही थी और लडकी का रोना चिल्लाना कुछ कम हो गया, उन सब को मैंने समझाया कि फालतू की बातो मे अपना जीवन बर्बाद नही करना चाहिये इसका पुरा इलाज कराना यह ठीक हो जायेगी,
                अजीब दास्तान है कि जवान लडकी को अंदरूनी कोई रोग हो जाये तो सिर्फ वही एक बात हो सकती है क्या ? बडी अजीब दास्तान है ये, यह सिर्फ एक क्वाँरी लडकी की कहानी नही है इस क्षेत्र मे ऐसी हजारो कहानियाँ मिल जायेगी, कई लडकिया मरने के बाद बदनाम होती है कोई जिंदा रह कर बदनामी का दंश झेलती है 

Monday 5 January 2015

भोपा - बावसी

            उसे शायद मरना ही था,कहते है जब किसी की मौत आती है तो जीवन के सारे रास्ते अपने आप ही बंद हो जाते है,फिर बस मरना ही पडता है, रामसिह अधेड उम्र का बडा ही नेक दिल,हंसमुख,मिलनसार व्यक्ति था ,बडा ही पुजा पाठी ,साथ ही घोर अंधविश्वासी था, अपने खेत पर बने कुए पर ही झोपडी बना कर रहता था,नये मकान भी वही बना रहा था, दर असल वह इस इलाके का नही था, रेलवे मे काम करता था फिर कोइ सस्ती जमीन मिल गई उसे खरीद ली और कुआ बनाकर वही रहने लगा,
            वह मेरे पास अक्सर आता रहता था,चिकित्सा की उसे कभी भी जरूरत नही पडती थी वह बडा मेहनत करने वाला,योग- कसरती तथा आत्मविश्वासी था, आता तो कभी स्वस्थ रहने के उपाय पूछ्ता कभी कोई धार्मिक चर्चा करता रहता, कभी कभार अपने माता -पिता एवम बच्चो को दवा दिलाने के काम से आता रहता था,लेकिन स्वम बडा ही निरोग था
            मै उसे धर्म का यथार्थ अर्थ बताता लेकिन उसके सही बात कम तथा फालतू बाते ही ज्यादा दिमाग मे बैठी थी वह वे फालतू बाते मुझे बताने की कोशीश करता कई बार तो बहस भी कर लेता,मैने उसे बहुत समझाया कि धर्म का मतलब अच्छा काम करने से है लेकिन उसके कोई भी बात समझ मे नही आती थी,वह लड-झगड के चला जाता था,वह बडा ही संत प्रकृति का था कुछ दिन बाद क्षमा याचना करता हुआ वापिस आ जाता था,
            संतो महात्माओ एवम भोपा-बावसी से उसे कुछ ज्यादा ही लगाव था,कई भोपाओ के पास उसका आना-जाना लगा रहता था,भोपा उन लोगो को कहते है जो किसी ऐसे स्थान पर पूजा करते है जहा पर किसी बलिदानी पुरूष या देवी देवता का मंदिर बना हुआ हो, मारवाड मे भोपाओ का बडा ही रुतबा है कई संत भोपा तो सरकार मे मंत्री तक बने हुये है, बावसी मतलब जिसकी भोपा पूजा करता है वो देवता या बलिदानी व्यक्ति बावसी कहलाता है, इन भोपाओ मे कथित रूप से इन देवि देवताओ की आत्मा प्रवेश कर जाती है और फिर ये लोगो का भविष्य बताते है,इन भोपाओ के चक्कर मे राम सिह भी था,
            रामसिह उंनसे भी धर्म चर्चा करता था उसी धर्म चर्चा के बलबुते वह मुझसे बहस करता रहता था,वे लोग उसे समझाते कि बिमारिया पापो का फल है वह कहता था कि जितनी भी बिमारिया है सब पापो की सजा है अतः बिमारियो का इलाज नही करवाना चाहिये,पाप समाप्त होते ही बिमारिया अपने आप ठीक हो जाती है यदि उपचार लिया तो पाप शेष रह जाते है और रोग दुबारा हो जाते है और आप जानते ही हो पापो की सजा तो भुगतनी ही पडती है,मै उसे खूब समझाता कि " मर्ज,कर्ज,और दुश्मन को पालना नही चाहिये," लेकिन उसे समझ मे नही आता था,
            एक दिन रामसिह छाती पकडे आया और बोलने लगा- "साब !आज कोई बडा पाप फूट रहा है छाती बहुत दर्द कर रही है"  मैने उसे समझाया कि मुझे चेक-अप करने दे ,लेकिन वह नही माना उसकी पत्नी के समझाने पर वह चेक-अप के लिये तैयार हुआ, वरना वह तो भोपा के पास ले जाने की जिद्द कर रहा था,मैने चेक किया तो ब्लडप्रेशर 200mm of hg आया धडकन भी बढ रही थी, मैने उसे दवा लेने की सलाह दी और कहा कि ये हार्ट अटेक है इसका इलाज करवाना बहुत जरूरी है लेकिन वह तो एक ही बात पर टिका हुआ था कि "मुझे बावसी के थान पर ले चलो, भोपा जी के पास ही मेरा ईलाज है"
            उसके घरवाले उसे भोपा के पास ले गये, एक घंटे बाद वह आराम से चल कर मेरे पास आया और स्वस्थ लग रहा था और कुछ व्यंग भरे लहजे मे बोला-"देखा साब!मै ठीक हो गया, ये सब पापो की सजा है मेरा दिल बिल्कुल सही है,आप बेवजह ही अटेक आ गया  कहकर डरा रहे थे" उसके साथ वाले भी भोपाजी का गुणगान कर रहे थे- "भोपा जी के पास गये और उन्होंने एक मंत्र फूंका और दर्द तो छू मनतर हो गया" इतना कह कर सब जोर से हंस पडे,
            यह जीवन बडा ही अनमोल है हम इस जीवन को बचाये रखने के लिये सदैव प्रयास रत रहते है लेकिन कई बार किसी अंधविश्वास या गलत सलाह से जीवन को खतरे मे डाल लेते है फिर जो परिणाम निकलता है वह खतरनाक होता है,
            दुसरे दिन रामसिह का लडका आया, रो रहा था कह रहा था कि "पापा को आज फिरसे तेज दर्द हुआ था पुरे पसीने पसीने हो गये थे लेकिन आपके पास आने की बजाय वे भोपा जी के थान पर ही गये है आप उन्हे समझाओ' लेकिन ऐसे आंधविश्वासी को कौन समझाये , संस्कृत मे एक कहावत है "विनाश काले विपरीत बुद्धि"और राम सिह के साथ भी यही हो रहा था,
            फिर एक दिन तेज दर्द उठा,लेकिन उसदिन राम सिह नही उठ पाया और राम को प्यारा हो गया, माता-पिता बीबी बच्चे बेचारे रोते ही रह गये,फिर भी लोगो के मुँह से ये कहते सुना कि "भोपाजी ने तो दो बार बचाया लेकिन आज तो थान पर पहुच ही नही पाया वरना बावसी बचा ही लेते"
            ये "अजीब दांस्तान" है कि लोग एक पढे लिखे व्यक्ति की बात नही मानते और किसी अनपढ व्यक्ति की बात मान कर अपना जीवन दाँव पर लगा देते है,ये एक राम सिह की ही दांस्तान नही है ऐसा पुरे मारवाड  की  अजीब दांस्तान है,