Saturday 26 September 2020

धरती के भगवान का लालची रूप ??

धरती का भगवान चिकित्सक को कहा जाता है । कहते है चिकित्सक से बैर यानी दुश्मनी नही करनी चाहिए और ना ही झगड़ा फसाद । क्योकि एक चिकित्सक से झगड़ा करने पर सौ चिकित्सक प्रभावित होते है और हजारो लोगो को उसका नुकशान होता है । चिकित्सक के साथ बहुत ही प्रेम और सम्मान से पेश आना चाहिए, ऐसे मैं नही , कुछ समझदार लोग कहते है । क्योकि चिकित्सक धरती का भगवान होता है । 
मेरा तो यह मानना है कि चिकित्सक भी एक इंसान ही होता है । यह भगवान की कृपा है कि मैं भी एक चिकित्सक हुँ । और थोड़ा अजीब सी बात यह है कि आयुर्वेद चिकित्सक हुँ । अजीब इसलिए है कि मुझे कुछ लोग डॉक्टर कहने में भी शर्म महशुस करते है । और सरकार भी जब काम करवाना हो तो डॉक्टर मान लेती है और कुछ लाभ देने का समय आता है तो वैद्य जी को डॉक्टर नही मानती है । जबकि वैद्य और डॉक्टर में सिर्फ भाषा का ही फर्क है हिंदी में दोनों को चिकित्सक ही कहा जाता है और काम भी दोनों एक जैसा ही करते है यानी चिकित्सा ही करते है । 
आज इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आप लोगो के साथ कुछ अजीब अजीब सी दांस्तान पेश कर रहा हूँ । यह सब सच्ची बाते है ।जो मेरे साथ घटित हुई है । हम यहां किसी के नाम और जाति का जिक्र नही करेंगे । सिर्फ फलाना जी ढिमका जी लिखेंगे । जिन लोगो को लेकर मैं बताऊंगा उन्हें तो पता चल ही जायेगा साथ ही आप लोगो को भी घटना का कुछ ना कुछ आभास जरूर होगा । चलो स्टार्ट करते है । 
 भयंकर बारिस हो रही है । एक व्यक्ति मुझे बुलाने मेरे घर पर आता है । आवाज लगाता है कम्पो साब , कम्पो साब । तेज बारिश की वजह से मुझे सुनाई नही देता । मेरे मकान की गली के लोग बाहर आते है और उसे कहते है ये कम्पो साब क्या कह रहा है ये डॉक्टर साहब है । डॉक सा डॉक सा आवाज लगा । या फिर वैधराज जी बोल या फिर गेट की कुंडी बजा । वह वैसा ही करता है । मैं बाहर आता हूँ मुझे कुछ भी पता नही कि उसने मुझे क्या संबोधन किया । उसकी गलती भी नही थी क्योंकि जिस मकान में मैं रह रहा था उसमें मेरे आने से पहले एक कंपाउंडर साहब रहते थे । आने वाला व्यक्ति परेशान सा लगता है । वह कहता है साहब ! मेरे  पिताजी बीमार है तेज बुखार से तप रहे है , जोर जोर से चिल्ला रहे है , नदी नालों की वजह से कोई साधन नही मिल रहा । साहेब मेरे घर चलो बप्पा बीमार है । मैंने कहा :- ज्यादा इमरजेंसी है तो बाहर ले जाओ मेरे पास इमरजेंसी का कोई इलाज नही है । लेकिन उसने बताया कि बारिश की वजह से बाहर नही ले जा सकते कोई साधन नही है । आप एक बार थोड़ा इलाज कर दे फिर बाहर ले जाएंगे । मुझे मेरे चिकित्सक धर्म याद आ गया और मैंने उसे कहा :- तेज बारिश है रुक जाने दे मैं आ जाऊंगा । नही साहब अभी चलो । मैं तैयार हुआ , उसके पास कोई साधन नही था । वह जिस गांव में मेरी पोस्टिंग थी वहां से आया था । मैंने मेरी मोटर साइकिल ली , बरसाती कोट पहना और कुछ भीगते हुए ही उसके साथ रवाना हो गया । तेज बारिश थी उसका घर एक नाले के उस पार था । मोटरसाइकिल आगे नही जा सकती थी पैदल ही जाना पड़ेगा ऐसा उसने बताया । मेरे में भी जोश था कुछ जवानी का और कुछ नई नई नौकरी का । मरीज को कोई तकलीफ ना हो ऐसी भावना कूट कूट कर भरी पड़ी थी ।
नाले में उतर गया कमर तक पानी था , बेग को सिर पर रखा । और जैसे तैसे मरीज के पास पहुँच गया । इलाज किया कुछ देर में मरीज को आराम मिल गया बुखार उतर गया । 
मैं वापसी के लिए रवाना हुआ । उसी नाले के पास कुछ लोग भेड़ बकरी चरा रहे थे उनमें से एक बोला : - "लोभ लालच क्या क्या नही करवाता । फिर भले ही नाले पार करने पड़े या तेज बारिश में भीगना पड़े" 
यह अजीब दांस्तान है   क्या मैं लोभ के वशीभूत था या सेवा करने गया था । क्या धरती का भगवान लालची था ।
इस तरह की और बहुत दांस्तान है । आप बने रहे मेरे साथ फिर मिलते है एक नई दांस्तान के साथ । तब तक के लिए जय श्री श्याम ।

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