Monday 27 March 2017

लच्छी लक्ष्मी बन गई

बहुत ज्यादा समय नही हुआ है । कुछ साल पहले की ही बात है । आज से करीब आठ साल पहले वह लोगों के लिए लच्छी हुआ करती थी। बहूत ही गरीब थी लेकिन रूप का तो भंडार दे दिया था प्रकृति ने उस बेचारी को, जो उसके लिए खतरा भी था और दुश्मन भी, वह मेहनत और मजदूरी करने में बहुत ही होशियार  थी , कहने का मतलब वह काम करने से जी नही चुराती थी ।

उसको गाँव में कोई ज्यादा नही जानते थे । वह अपनी दुनिया में मस्त थी और मजदूरी करके पेट भरती थी ।
उसका पति भी मजदूरी करता था और दोनों अपनी गृहस्थी की गाड़ी को चला रहे थे ।

जब घर आराम से चल रहा हो और किसी की नजर लग जाये तो कहते है भले भलो के घर उझड़ जाते है।

लच्छी का पति भी किसी की नजर का शिकार हो गया और नशे का आदी हो गया । जब कोई व्यक्ति नशा करने लगता है तो काम धंधे में मन लगाना मुश्किल सा हो जाता है । अब कुछ महत्वांकाक्षा भी बढ़ जाता है। अब पति परमेश्वर को सिर्फ गृहलक्ष्मी के साथ साथ बहुत सारी धनलक्ष्मी की जरुरत महशुस होने लगी ।

जब धन दौलत कमाने की प्रबल इच्छा होती है और वांछित योग्यता ना हो तो मनुष्य गलत काम की ओर कदम बढाता  है । कोई गलत काम करता है तो कोई गलत उपाय करता है ।

गलत उपाय से तात्पर्य है कि टोना टोटका या तंत्र मंत्र का सहारा लेने लगता है । लच्छी का पति भी कुछ इसी प्रकार के काम में पड़ कर तांत्रिको के चक्कर लगाने लगा ।

कमाई करना भी हर किसी के बस की बात नही होती । जो समय का मोल समझता है वह कभी भी जीवन में परेशान नही होता है। जो समय पर अपने जीवन को समझ लेता है वह जीवन को जी लेता है । और जो जीवन को नही समझ पाता वह केवल परेशां होने के सिवाय कर भी क्या सकता है ।जब समय निकल जाता है तो सिर्फ पछताने के सिवाय कुछ मिलता नही है ।

एक दिन तंत्र मंत्र के चक्कर में लच्छी का पति तालाब में डूब कर मर गया । लक्ष्मी पाने के लिए लक्ष्मी पूजन के लिए कमल के फूल लेने तालाब में उतर गया और कमल के जाल में ऐसे पैर फ़सा तो निकल ही नही पाया और पैर की जगह प्राण निकल गए । जिस दिन यह घटना घटी उसी दिन मैंने इस परिवार के बारे में पहली बार जाना था । इससे पहले मेरा कभी भी कोई परिचय नही था ।

लोग बाते कर रहे थे , "बेचारी लच्छी  कितनी मेहनत करती थी पूरा घर सम्भालती थी। दोनों मिल कर आराम से घर चला रहे थे । पता नही क्यो लोगो के बहकावे में आकर कमल के फूल के चक्कर में जीवन से हाथ धो बैठा। अब बेचारी लच्छी कैसे चार चार बच्चो का पेट पालेगी" ।

मेरी कोई खास जिज्ञासा नही थी । रोज ऐसी घटनाएं होती रहती है । मैंने कोई ज्यादा तव्वजो नही दी।
बात आई गई हो गई । कुछ दिन बीत गए । अब अकेली  लच्छी अपने चारों बच्चो का पेट पालने लगी। कुछ दिन कुछ राहत के पैसे मिले थे उनसे काम चलता रहा । लेकिन कब तक काम चलता पापी पेट की आग कभी बुझती ही नही है । अपनी भूख के लिए नही तो माँ को बच्चो की भूख के लिए बाहर जाना शुरू कर दिया । लेकिन उसको क्या मालुम बाहर भी भूखे भेड़िये शिकार की तलाश में घूम रहे है। उसका भी ऐसे लोगो से सम्पर्क  हुआ और मुकाबला भी करना पड़ा ।

गाँव में स्थित राजकीय आयुर्वेद औषधालय में  एक दिन वह आई क्योकि उसकी बच्ची को माता जी का प्रकोप (smallpox)हो गया और वह बुखार के साथ ही साथ बड़े बड़े फफोलो से भर गई। वह उसे लेकर आई । पैसा नही था । जब पैसा नही होता है तो परिचय करना पड़ता है उसने भी अपना परिचय मुझे दिया लेकिन मुझे उससे कोई लेना देना नही था इस तरह के मरीज इस औषधालय में रोज आते रहते है किसी के पैसे दुकान वाला उधार कर लेता है और किसी किसी को मुझे सहयोग करना पड़ता है । लेकिन ऐसा हमेशा सम्भव नही होगा ऐसा कहकर टालना पड़ता है । कुछ लोग ईमानदार होते है वे पैसे चुका देते है लेकिन ज्यादातर लोगो का राम मरा हुआ ही होता है यह औरत गरीब थी लेकिन बेईमान नही लगी ।

इस औरत को पहले जब उसका पति था तब जो मजदूरी आराम से मिल जाती थी वह अब मिलना बहुत मुश्किल हो गई थी। कुछ लोग तो इसलिए काम नही देते थे क़ि पता नही सही काम कर पाएगी या नही और कुछ ये सोचते थे क़ि  पता नही लोग क्या बाते बनाएंगे।

लच्छी के सामने भयंकर आर्थिक संकट था । अब वह सिर्फ उधार की जिंदगी जीने को मजबूर थी। जब चारो तरफ से अन्धेरा ही अँधेरा दिखाई दे तो मानव अपने आपको हारा हुआ ही समझता है ।

उसने मुझे बहुत ही आर्त स्वर में कहा - "डॉ साहब जी ! मेरे पास देने के लिए कुछ भी नही है । मेरी बच्ची की बहुत ही बुरी हालत है आप कुछ इलाज कर दो तो बहुत मेहरबानी होगी। उस दिन मुझे लगा क़ि ये जो सरकारी निशुल्क दवा योजना है वास्तव में बहुत ही सही है और यह ऐसे लोगो के लिए ही आती है । लेकिन सच में इन लोगो तक नही पहुच पाती है । मैंने उस बच्ची को देखा और जो औषधालय में दवा उपलब्ध थी वो उसे दी और कुछ दवा मेडिकल से लाकर भी उसे दी । उसने बाहर की दवा के पैसे पूछे । मैंने कह दिया "जब कभी तेरे पास हो तो दे देना वरना कोई बात नही । मैंने दे दिए है" ।

उस दिन वह चली गई । मुझे भी कोई याद नही रहा । लेकिन वह आई और बोली - "साहेब आपके कितने पैसे हुए थे । आज है मेरे पास लेलो" मैंने कहा  - "मुझे याद नही है , कितने थे । आप इन पैसो से अपने बच्चों के लिये कुछ खाने के लिए ले जाना"। वह नही मान रही थी तब मैंने कहा कि "आज तो कोई बात नही आगे कभी बाहर की दवा हो तो उसके पैसे दे देना"।

ज्यादातर रोग गरीबो को ही होते है । कमजोर शरीर को बुरे लोग और बुरे रोग परेशान करते है । यह यह भूख भी अमीरों के बजाय गरीबो को ही ज्यादा लगती है। राजयक्ष्मा जैसे राजाओं के होने वाले रोग भी आजकल गरीबो को ही होने लगे है । गरीब लच्छी के बच्चे भी  अब इन भयंकर रोगों से कहा तक बचने वाले थे ।सही पौषण न मिलने से और कमजोरी के कारण बीमारियो से घिरे ही रहने लगे ।

एक दिन उसका छोटा बेटा बीमार हो गया उसे दिखाने के लिए मेरे घर पर आये । हालत बहुत ही खराब थी मैंने उसे रेफर कर दिया बोला :- "इसको निमोनिया हो गया है । अभी बाहर लेजाना पड़ेगा ' मेरा इतना बोलना था और उसका तो दम ही निकल गया । वह गिड़गिड़ाने लगी :- साहिब पैसे नही है बाहर ले जाकर दिखाने के , कहाँ ले जाऊंगी । और वह रोने लगी । लेकिन मैं क्या कर सकता था इतनी इमरजेंसी को डील करने की सुविधा यदि आयुर्वेद में होती तो आयुर्वेद औषधालयों में मरीजो की भीड़ लगी होती । इस विभाग में जितना अभाव औषधियों का है या यूँ कहे की यह अभावो से ग्रस्त विभाग है तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । यहां आकर आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी अपने आपको पंगु महशुस करता है । इस तरफ सरकार को भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए । खैर कुछ भी रहा हो मैंने उसे रेफर कर ही दिया । और वह रोते कलपते चली गई ।

तब मुझे लगा कि गरीब का कौन सहारा है । गाँवो में खुले औषधालय तो कोई सहारा बन नही पा रहे । मैं भी दुखी मन से सो गया । सुबह हॉस्पिटल जा रहा था तो लछी का घर भी रस्ते में ही था लोग इकठ्ठा हो रहे थे मेरी  जिज्ञासा बढ़ गई पूछा तो पता चला लच्छी का बेटा आज सुबह ख़त्म हो गया ।

कुछ दिन बाद मैं भी मिलने गया वह फूट फूट कर रोने लगी "मेरा कौन सहारा है .......मैं अब किसके लिए जीऊँगी .......। गरीब को जीने का हक़ नही है साहब !......गरीब का तो कोई सहारा नही होता साहेब।

वह हताश निराश रोती रही मैं भी क्या कर सकता था सिर्फ ढाढस दिलाने के सिवाय क्या कर सकता था ।

मैंने सिर्फ इतना ही कहा:- "तू माँ है । यह कभी मत भूलना"

वह रोते हुए बच्चों को देख कर बिलखने लगी । विवश और लाचार इंसान ज्यादातर गलत कदम उठा लेते है । लेकिन लच्छी का मातृत्व शायद जग गया था ।

फिर एक बड़ा दुःख लेकर लच्छी अब अपना जीवन बिताने के लिए मजबूर थी ।

उसका रूप यौवन सब ख़त्म हो चला था अब वह तीन बच्चों का पालन पौषण का जिम्मा अपने सिर पर उठाये अपनी जीवन की गाड़ी को चला रही है ।

लेकिन उसके  चेहरे की मुस्कुराहट अब गंभीरता से भरी थी और अब चेहरे पर एक आत्मविश्वास की झलक दिखाई दे रही  थी । उसे अब लगने लगा था कि जीवन किसी के सहारे से नही जीया जा सकता है । वह कमर कस कर अब लच्छी से लक्ष्मी बनने को तैयार हो गई थी । क्योंकि गरीबी से लड़ना सबसे बड़ा युद्ध होता है । लच्छी अब युद्ध के लिए तैयार थी ।

जब जीवन भार लगने लगे तब कुछ लोग जीवन लीला समाप्त कर लेते है और लच्छी जैसी कमजोर और असहाय अबला नारी अपने आपको सबल बनाने के लिए तैयार ही नही हुई वह कुछ वर्ष बाद अपने आपको सबल बनाने में सफल भी हुई ।

अजीब दांस्तान यह है कि कुछ लोग अपने जीवन को बुरी हालात में देख कर हार मान लेते है और सुसाइड कर लेते है ऐसे में इस प्रकार की अबला नारी अपने ईमानदारी और कर्मठता से ऊपर उठ कर समाज को सीख दे रही है फिर भी लोग इन्हें अबला कहते है ।

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